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गुरुवार, 2 मई 2019

विशेष : अरबी की खेती कर बढ़ा सकते हैं आमद

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पूर्णिया (आर्यावर्त संवाददाता) : कंद के रुप में उपयोग के लिए अरबी उगाया जाता है। अरबी की पत्तियों तथा कंदों में एक प्रकार का उद्दीपनकारी पदार्थ (कैल्शियम ऑक्जीलेट) होता है। जिस कारण इसे खाते वक्त मुंह और गले में तीक्ष्णता (खुजलाहट) उत्पन्न होती है। उन्नत तथा विकसित किस्मों में यह तत्व मात्र नाम का पाया जाता है। अरबी का कंद कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन का अच्छा स्त्रोत है। इसके कंदों में स्टार्च की मात्रा एवं आलू तथा शकरकंद से अधिक होती है। इसकी पत्तियों में विटामिन ए खनिज लवण जैसे फास्फोरस, कैल्शियम व आयरन और बीटा कैरोटिन पाया जाता है। इसके प्रति 100 ग्राम में 112 किलो कैलोरी ऊर्जा और 26.46 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 43 मिली ग्राम कैल्शियम, 591 मिली ग्राम पोटेशियम पाया जाता है। इसकी नर्म पत्तियों से साग तथा पकोड़े बनाए जाते हैं। इसके कंदों को साबुत उबालकर व छिलका उतारने के बाद तेल या घी में भून कर स्वादिष्ट व्यंजन के रुप में प्रयोग किया जाता है। हरी पत्तियों को बेसन और मसाले के साथ रोल के रुप में भाप से पका कर खाया जाता है। पत्तियों के डंठल को टुकड़ों में काट तथा सुखा कर सब्जी के रुप में प्रयोग किया जाता है। अरबी अजीर्ण के रोगियों के लिये फायदेमंद है और इसका आटा छोटे बच्चों के लिए लाभदायक है। इन सब महत्व को ध्यान में रखकर किसान को इसकी खेती का परंपरागत तरीका छोड़कर वैज्ञानिक तकनीक से करनी चाहिए। ताकि इसकी खेती कर किसान अत्यधिक मात्रा में उपजा सके। 

सबसे पहले उपयुक्त जलवायु होना चाहिए। अरबी फसल के लिए गर्म तथा नम जलवायु और 21 से 27 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती हैं। अधिक गर्म व अधिक सूखा मौसम में इसकी पैदावार पर विपरित प्रभाव डालता हैं। जहां पल्ला गिरती है या पल्ला गिरने की समस्या होती हैं वहां इस फसल की अच्छी पैदावार नहीं होती है। जिन स्थानों पर औसत वार्षिक वर्षा 800 से 1000 मिलीमीटर तथा समान रूप से वितरित होती हैं वहां इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। छायादार स्थान में भी पैदावार अच्छी होती हैं इसलिए फलदार वृक्षों के साथ अंतरवर्तीय फसलों के रूप में ली जा सकती है। 

...फसल के लिए भूमि की तैयारी कैसे करें : 
अरबी की अच्छी फसल के लिए बलुवाही व दोमट मिट्टी होनी चाहिए। दोमट और चिकनी दोमट में भी उत्तम जल निकास के साथ इसकी खेती की जा सकती है। इसकी खेती के लिए 5.5 से 7.0 पीएच मान वाली भूमि उपयुक्त होती है। रोपण के लिए खेत तैयार करने के लिए एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल और दो जुताई कल्टीवेटर से करके पाटा चलाकर मिट्टी को भुरी भुरी बना लेना चाहिए। 

...फसल के लिए उन्नत किस्में : 
- इंदिरा अरबी : इस किस्म के पत्ते मध्यम आकार और हरे रंग के होते हैं। तने (पर्णवृंत) का रंग ऊपर नीचे बैंगनी तथा बीच में हरा होता है। इस किस्म में 9 से 10 मुख्य पुत्री धनकंद पाए जाते हैं। इसके कंद स्वादिष्ट खाने योग्य होते हैं और पकाने पर शीघ्र पकते हैं। यह किस्म 210 से 220 दिन में खुदाई योग्य हो जाती हैं। इसकी औसत पैदावार 22 से 33 टन प्रति हेक्टेयर होती हैं।

- श्री रश्मि : इसका पौधा लंबा, सीधा और पत्तियां झुकी हुई हरे रंग की बैंगनी किनारा लिए होती हैं। तना (पर्णवृंत) का ऊपरी भाग हरा, मध्य तथा निचला भाग बैंगनी हरा होता है। इसका मातृ कंद बड़ा और बेलनाकार होता है। पुत्री धनकंद मध्यम आकार के व नुकीले होते हैं। इस किस्म के कंद कंदिकाएं, पत्तियां और पर्णवृंत सभी तीक्ष्णता (खुजलाहट) रहित होते हैं तथा उबालने पर शीघ्र पकते हैं। यह किस्म 200 से 201 दिन में खुदाई के लिए तैयार हो जाती हैं और इससे औसत 15 से 20 टन प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त होती हैं। 

- पंचमुखी : इस किस्म में सामान्यतः पांच मुख्य पुत्री कंदिकाएं पायी जाती हैं। कंदिकाएं खाने योग्य होती हैं और पकने पर शीघ्र पक जाती हैं। रोपण के 180 से 200 दिन बाद इसके कंद खुदाई योग्य हो जाते हैं। इस किस्म से 18 से 25 टन प्रति हेक्टेयर औसत कंद पैदावार प्राप्त होती हैं।

...उन्नत किस्म की खेती कैसे करें : 
- व्हाइट गौरेइया : अरबी की यह किस्म रोपण के 180 से 190 दिन में खुदाई योग्य हो जाती हैं। इसके मातृ तथा पुत्री कंद व पत्तियां खाने योग्य होती हैं। इसकी पत्तियां डंठल और कंद खुजलाहट मुक्त होते हैं। यह उबालने या पकाने पर शीघ्र पकते हैं। इस किस्म की औसत पैदावार 17 से 19 टन प्रति हेक्टेयर हैं।
- नरेंद्र अरबी : इस किस्म के पत्ते मध्यम आकार के तथा हरे रंग के होते हैं। पर्णवृंत का ऊपरी और मध्य भाग हरा तथा निचला भाग भी हरा होता है। यह 170 से 180 दिनों में तैयार हो जाती हैं। इसकी औसत पैदावार 12 से 15 टन प्रति हेक्टेयर हैं। इस किस्म की पत्तियां, पर्णवृंत एवं कंद सभी पकाकर खाने योग्य होते हैं। 
- श्री पल्लवी : यह किस्म 210 दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार 16 से 18 टन प्रति हेक्टेयर है।
- श्रीकिरण : यह किस्म 190 दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार 17 से 18 टन प्रति हेक्टेयर है। 
- सतमुखी : यह किस्म 200 दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार 15 से 20 टन प्रति हेक्टेयर है।
- आजाद अरबी : यह किस्म 135 दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार 28 से 30 टन प्रति हेक्टेयर है।
- मुक्ताकेशी : यह किस्म 160 दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार 20 टन प्रति हेक्टेयर है।
- बिलासपुर अरूम : यह किस्म 190 दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार 30 टन प्रति हेक्टेयर है।

...कैसे करें बीज की बुआई : 
रोपण का समय : अरबी का रोपण जून से जुलाई (खरीफ फसल) में किया जाता है। उत्तरी भारत में इसे फरवरी से मार्च में भी लगाया जाता हैं।
बीज की मात्रा : बीज दर किस्म और कंद के आकार तथा वजन पर निर्भर करती हैं। सामान्य रूप से 1 हेक्टेयर में रोपण के लिए 15 से 20 क्विटल कंद बीज की आवश्यकता होती हैं। इसके मातृ एवं पुत्री कंदों (20 से 25 ग्राम) दोनों को रोपण सामग्री के लिए प्रयुक्त किया जाता है। 
बीजोपचार : कंदों को रिडोमिल एमजेड- 72 की 5 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम कंद की दर से उपचारित करना चाहिए। कंदों को बुआई पूर्व फफूंदनाशक के घोल में 10 से 15 मिनट डुबाकर रखना चाहिए।

...सब्जियों में सूत्रकृमि (निमेटोड) की समस्या, लक्षण एवं नियंत्रण : 
कंद रोपण विधियां : 
- मेड़नाली विधि : इस विधि में तैयार खेत में 60 सेंटीमीटर की दूरी पर मेड़ व नाली का निर्माण किया जाता है तथा 10 सेंटीमीटर उंची मेड़ पर 45 सेंटीमीटर की दूरी पर प्रत्येक कंद बीज को 5 सेंटीमीटर की गहराई में रोपा जाता हैं।
- ऊंची समतल क्यारी मेड़नाली विधि : इस विधि में खेत में 8 से 10 सेंटीमीटर ऊंची समतल क्यारियां बनाते हैं। जिसके चारो तरफ जलनिकास नाली 50 सेंटीमीटर की होती हैं। इन क्यारियों पर लाईन की दूरी 60 सेंटीमीटर की रखते हुए 45 सेंटीमीटर के अंतराल पर बीजों का रोपण 5 सेंटीमीटर की गहराई पर किया जाता है। इस विधि में रोपण के दो माह बाद निंदाई गुड़ाई के साथ उर्वरक की बची मात्रा देने के बाद पौधों पर मिट्टी चढ़ाकर बेड को मेडनाली में परिवर्तित करते हैं। यह विधि अरबी की खरीफ फसल के लिए उपयुक्त हैं। 
- नालीमेड विधि : इस विधि में अरबी का रोपण 8 से 10 सेंटीमीटर गहरी नालियों में 60 से 65 सेंटीमीटर के अंतराल पर करना चाहिए। रोपण से पूर्व नालियों में आधार खाद और उर्वरक देना चाहिए। रोपण के 2 माह बाद बचे हुए उर्वरक की मात्रा देने के साथ नालियों को मिट्टी से उपर तक भर पौधों पर मिट्टी चढाकर मेड नाली पद्धति में परिवर्तित कर देना चाहिए। यह विधि रेतीली दोमट और नदी किनारे भूमि के लिए उपयुक्त हैं।

...फसल के लिए खाद और उर्वरक : 
अरबी के लिए भूमि तैयार करते समय 15 से 25 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद और आधार उर्वरक को अंतिम जुताई करते समय मिला देना चाहिए। रासायनिक उर्वरक नाईट्रोजन 80 से 100 किलोग्राम, फास्फोरस 60 किलोग्राम और पोटाश 80 से 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। नाईट्रोजन तथा पोटाश की पहली मात्रा आधार के रूप में रोपण के पूर्व देना चाहिए। रोपण के एक माह नाईट्रोजन की दूसरी मात्रा का प्रयोग निंदाई गुड़ाई के साथ करना चाहिए। दो माह के बाद नाइट्रोजन की तीसरी तथा पोटाश की दूसरी मात्रा को निंदाई गुड़ाई के साथ देने के बाद पौधों पर मिट्टी चढ़ा देना चाहिए। अरबी की पत्तियों का फैलाव ज्यादा होने के कारण वाष्पोत्सर्जन ज्यादा होता हैं। इसलिए प्रति इकाई पानी की आवश्यकता अन्य फसलों से ज्यादा होता है। सिंचित अवस्था में रोपी गयी फसल में 7 से 10 दिन के अंतराल पर 5 माह तक सिंचाई की आवश्यकता होती है। वर्षा आधारित फसल में 15 से 20 दिन तक वर्षा न हो तो सिंचाई के साधन उपलब्ध होने पर सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। परिपक्व होने पर भी अरबी की फसल हरी दिखती हैं। सिर्फ पत्तों का आकार छोटा हो जाता हैं। खुदाई के एक माह पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए। अरबी की अच्छी पैदावार के लिए यह आवश्यक हैं कि खेत खरपतवारों से मुक्त रहे और मिट्टी सख्त न होने पाएं। इसके लिए रोपण के एक माह बाद हल्की निंदाई गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। यदि रोपण के बाद मल्चिंग (पलवार) का प्रयोग किया जाए तो खरपतवारों की रोकथाम अपने आप हो जाती हैं और कंदों का अंकुरण भी अच्छा होता है। रोपण के बाद कुल तीन निंदाई गुड़ाई (30, 60, 90 दिन बाद) की आवश्यकता होती है। 60 दिन वाली गुड़ाई के साथ मिट्टी चढ़ाने का कार्य भी करना होता है। यह ध्यान रखना चाहिए कि कंद हमेशा मिट्टी से ढके रहे। नींदा नियंत्रण के लिए रासायनिक खरपतवारनाशी सिमाजिन या एट्राजिन 1.5 से 2.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से रोपण पूर्व उपयोग किया जा सकता है। अरबी की फसल में प्रति पौधा अधिकतम तीन स्वस्थ पर्णवृन्तों को छोड़ बाकी अन्य निकलने वाले पर्णवृंतों की कटाई करते रहना चाहिए। इससे कंदों के आकार में वृद्धि होती है।

...फसल के लिए कीट एवं रोकथाम : 
- तम्बाकू की इल्ली : अरबी फसल को हानि पहुंचाने वाला यह एक प्रमुख कीट हैं। इसकी इल्लियां पत्तियों के हरित भाग को चटकर जाती हैं, जिससे पत्तियों की शिराएं दिखने लगती हैं तथा धीरे धीरे पूरी पत्ती सूख जाती हैं।
- रोकथाम : कम संख्या में रहने पर इनको पत्ते समेत निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए। अधिक प्रकोप होने पर क्विनालफॉस 25 ई सी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या प्रोफेनोफॉस 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिए।
- एफिड (माहू) एवं थ्रिप्स : एफिड एफिड (माहू) एवं थ्रिप्स रस चूसने वाले कीट हैं। यह अरबी फसल की पत्तियों का रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। पत्तियों पर छोटे काले धब्बे दिखाई देते हैं अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां सूख जाती हैं।
- रोकथाम : क्विनालफॉस या डाइमेथियोट के 0.05 प्रतिशत घोल का 7 दिन के अंतराल पर दो से तीन छिड़काव कर रस चूसने वाले कीटों को नियंत्रित किया जा सकता हैं।

...रोग का रोकथाम कैसे करें : 
- फाइटोफ्थोरा झुलसन (पत्ती अंगमारी) : अरबी की फसल का यह मुख्य रोग है। यह रोग फाइटोफथोरा कोलाकेसी नामक फफूंदी के कारण होता है। इस रोग में पत्तियां, कंदों, पुष्प पुंजो पर रोग के लक्षण दिखाई देते हैं। पत्तियों पर छोटे छोटे गोल या अंडाकार भूरे रंग के धब्बे पैदा होते है। जो धीरे धीरे फैल जाते हैं बाद में डंठल भी रोग ग्रस्त हो जाता है और एवं पत्तिया गलकर गिरने लगती हैं तथा कंद सिकुड़ कर छोटे हो जाते हैं।
- रोकथाम : अरबी कंद को बोने से पूर्व रिडोमिल एम जेड- 72 से उपचारित करें। खड़ी फसल में रोग की प्रारम्भिक अवस्था में रिडोमिल एम जेड- 72 की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिडकाव करें।
- सर्कोस्पोरा पर्ण चित्ती (पत्ती धब्बा) : इस रोग से पत्तियों पर छोटे वृताकार धब्बे बनते हैं। जिनके किनारे पर गहरा बैंगनी और मध्य भाग राख के समान होता है। लेकिन रोग की उग्र अवस्था में यह धब्बे मिलकर बडे़ धब्बे बनते हैं। जिससे पत्तियां सिकुड़ जाती हैं और पत्तियां झुलसकर गिर जाती हैं।
- रोकथाम : रोग की प्रारंभिक अवस्था में मेंकोजेब 0.3 प्रतिशत का छिडकाव करें और क्लोरोथेलोनिल की 0.2 प्रतिशत मात्रा का छिडकाव करें।
- मोजैक : इसके प्रकोप से पत्तियां तथा पौधे छोटे रह जाते हैं। पत्तियों पर पीली सफेद धारियां पड़ जाती हैं। प्रभावित पौधों में बहुत ही कम मात्रा में कंद बनते हैं।
- रोकथाम : इस रोग के प्रबंधन के लिए अरबी का रोग मुक्त फसल से बीज लेना चाहिए। रस चूसने वाले कीट जो की इस रोग को फैलाते हैं का प्रभावी नियंत्रण करना चाहिए। प्रभावित पौधों को कंद समेत उखाड़ कर नष्ट करके इस रोग को फैलने से रोका जा सकता हैं।
- कंद का शुष्क सड़न रोग : यह रोग भंडारण में अरबी कंदों को क्षति पहुंचाता है। संक्रमित कंद भूरे, काले, सूखे, सिकुडे, कम भार वाले होते हैं और कंद के उपरी सतह पर सूखा फफूंद चूर्ण बिखरा रहता है। लगभग 60 दिन में संक्रमित कंद पूरी तरह से सड़ जाता है तथा सड़े कंदों से अलग किस्म की बदबू आती है।
- रोकथाम : बीज के लिए प्रयुक्त होने वाले अरबी कंद को 0.1 प्रतिशत मरक्यूरिक क्लोराइड या 0.5 प्रतिशत फार्मेलिन से उपचारित कर भंडारित करना चाहिए।

...फसल की खुदाई : 
अरबी की वर्षा आधारित फसल 150 से 175 दिन तथा सिंचित अवस्था की फसल 175 से 225 दिनों में तैयार हो जाती हैं। कंद रोपण के 40 से 50 दिन बाद पत्तियां कटाई के योग्य हो जाती है। कंद पैदावार के लिए रोपित फसल की खुदाई आमतौर पर जब पत्तियां छोटी हो जाए तथा पीली पड़कर सूखने लगे तब की जाती हैं। खुदाई उपरांत अरबी के मातृ कंदों एवं पुत्री कंदिकाओं को अलग करना चाहिए। 

...आधुनिक विधि व पैदावार : 
उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से अरबी की खेती करने पर सामान्य अवस्था में अरबी से किस्म के अनुसार वर्षा आधारित फसल के रूप में 20 सर 25 टन तथा सिंचित अवस्था की फसल में 25 से 35 टन प्रति हेक्टेयर कंद पैदावार प्राप्त होती हैं। जब लगातार पत्तियों की कटाई की जाती है, तब कंद एवं कंदिकाओं की पैदावार 6 से 9 टन प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है, जबकि एक हेक्टेयर से 8 से 11 टन हरी पत्तियों की पैदावार होती हैं।

...भंडारण : 
अरबी मातृकंदों को मात्र 1 से 2 महीने तक एवं पुत्री कंदिकाओं को 4 से 5 महीने तक सामान्य तापक्रम पर हवादार भंडार गृह में भंडारित किया जा सकता है। कंद एवं कंदिकाओं का पानी से धुलाई तथा श्रेणीकरण करना आवश्यक है। केवल लंबी अंगुलीकार कंदिकाओं को छाया में सूखाकर बांस की टोकरी या जूट के बोरों में भरकर विक्रय के लिए भेजना चाहिए। ग्रीष्मकालीन अरबी के कंदों का भंडारण ज्यादा दिन तक नहीं किया जा सकता है। खुदाई उपरांत एक माह के अंदर कंदों का उपयोग कर लेना चाहिए।

...उत्पादकता बढ़ाने के लिए क्या करें : 
फाइटोफ्थोरा झुलसन (पत्ती अंगमारी) अरबी की फसल का यह मुख्य रोग है। जिसमें पत्तियां गलकर गिरने लगती हैं और कंद सिकुड़ कर छोटे हो जाते हैं। कंद बोने से पूर्व रिडोमिल एमजेड- 72 से उपचारित करें, खड़ी फसल में रोग की प्रारंभिक अवस्था में रिडोमिल एमजेड- 72 की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें।

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