पूर्णिया : महर्षि मेंहीं परहंस जी महाराज की 135 वीं जयंती पर दिखा हर्षोल्लास - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 17 मई 2019

पूर्णिया : महर्षि मेंहीं परहंस जी महाराज की 135 वीं जयंती पर दिखा हर्षोल्लास

महर्षि मेंहीं अमर रहे के नारों से गुंजायमान हुआ शहर - नगर प्रभातफेरी को देखने उमड़ी लोगों की भीड़
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पूर्णिया (आर्यावर्त संवाददाता)  : 21 वीं सदी के महान संत सद्गुरू महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की 135 वीं जयंती शुक्रवार को हर्षोल्लास के साथ मनाई गई। जयंती समारोह को लेकर संतमत सत्संग मंदिर, महर्षि मेंहीं नगर मधुबनी में भव्य नगर प्रभातफेरी निकाली गई। नगर प्रभातफेरी मधुबनी संतमत सत्संग मंदिर से निकलकर मधुबनी बाजार होते हुए सिपाही टोला, डॉलर हाउस चौक, कचहरी, आरएन साह चौक होते हुए भट्‌ठा बाजार, खीरू चौक, लाइन बाजार, प्रभात कॉलोनी, जनता चौक होते हुए पुन: संतमत सत्संग मंदिर में समाप्त हुई। नगर प्रभातफेरी के दौरान जब तक सूरज चांद रहेगा महर्षि मेंहीं जी का नाम रहेगा, महर्षि मेंहीं का अमर संदेश घर घर पहुंचे देश विदेश, मानव मानव एक हैं, ईश्वर तक जाने का रास्ता एक है, सब संतन की बलि बलिहारी जैसे नारों से गुंजायमान हुआ शहर। नगर प्रभातफेरी का नेतृत्व आश्रम समिति के अध्यक्ष कुमार उत्तम सिंह, सचिव सुधाकर प्रसाद सिंह, पूज्य चंद्रानंद स्वामी, पूज्य शैलेंद्र बाबा, सोपाल साह आदि कर रहे थे। प्रभातफेरी के उपरांत आश्रम परिसर में स्तुति प्रर्थाना एवं महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के संक्षिप्त जीवन दर्शन का पाठ किया गया। आरति प्रार्थना के उपरांत सबसे पहले आश्रम के व्यवस्थापक पूज्य चंद्रानंद स्वामी, पूज्य शैलेंद्र बाबा, पूज्य बिंदेश्वरी बाबा द्वारा महर्षि मेंहीं परहंस जी महाराज के तैल चित्र पर माल्यार्पण किया गया। उसके बाद आश्रम समिति के अध्यक्ष कुमार उत्तम सिंह, सचिव सुधाकर प्रसाद सिंह, लाला प्रसाद रजक, डाॅ विष्णुदेव भगत, सुरेश प्रसाद साह, सहित आश्रम में उपस्थित महिला व पुरूष श्रद्धालुओं ने बारी बारी से पुष्पांजलि अर्पित की। पुष्पांजलि के उपरांत आश्रम समिति की आरे से आयोजित भंडारा प्रसाद में पांच हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने भंडारे का प्रसाद ग्रहण किया। 

...ईश्वर भक्ति के लिए सच्ची श्रद्धा जरूरी : पूज्य चंद्रानंद बाबा
ईश्वर भक्ति के लिए सच्ची श्रद्धा जरूरी है। अगर हमलोग गुरू पर पूर्ण विश्वास कर उनके बताए मार्ग पर चलते रहेंगे तो मनुष्य शरीर पाने की सार्थकता पूर्ण हो जाएगी। उक्त प्रवचन संतसदगुरू परमहंस जी महाराज के शिष्य पूज्य चंद्रानंद बाबा जयंती समारोह के मौके पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि सच्ची भक्ति तभी होगी जब गुरू के बताए मार्ग पर चलेंगे। इस मौके पर पूज्य बिंदेश्वरी बाबा ने कहा कि लोगों को नियमित सत्संग व ध्यान करना चाहिए। सत्संग व ध्यान करने से मन का विकार दूर होता है और मन पवित्र होता है। जब मन पवित्र हो जाएगा तब ईश्वर की प्राप्त होगी। उन्होंने सत्संग में उपस्थित श्रद्धालुओं को अपने माता पिता व अग्रजों की सेवा गुरू की तरह करने को कहा। उन्होंने कहा कि अगर अपने माता पिता की सेवा नहीं करेंगे तो कभी भी दूसरों के प्रति सेवा का भाव पैदा नहीं होगा। इसलिए अपने माता पिता की सेवा सबसे पहले करनी चाहिए। माता पिता ही पहला भगवान होते हैं। पूज्य शैलेंद्र बाबा ने अपने प्रवचन में कहा कि हमलोग आज गुरू महाराज की जयंती मनाने के लिए इकट्‌ठा हुए हैं। हमें गुरू के बताए मार्ग पर चलना होगा तभी सच्ची भक्ति होगी। इस मौके पर ब्रह्मदेव प्रसाद, महावीर प्रसाद यादव, महेश शर्मा, डॉ विष्णुदेव भगत, नागेश्वर मोदी, सुरेश प्रसाद साह आदि ने भी अपनी बातें रखी और नियमित सत्संग करने की सलाह दी। 

...संतमत सत्संग महिला समिति द्वारा शीतल शर्बत की व्यवस्था : 
महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की जयंती समारोह पर मधुबनी संतमत सत्संग आश्रम से निकाली गई नगर प्रभात फेरी में शामिल सौकड़ों लोगों का भव्य स्वागत भट्‌ठा बाजार खीरू चौक में संतमत सत्संग महिला समिति के सदस्यों द्वारा किया गया। खीरू चौक पर नगर प्रभातफेरी में शामिल सभी श्रद्धालुओं एवं आने जाने वालों को शीतल शर्बत पिलाया गया। इस मौके पर करूणा देवी, उर्मिला अग्रवाल, सिम्पल अग्रवाल, अमीना देवी, रीता देवी, उषा देवी, देवी जी, दीपक कुमार, महावीर राजपूत, राहुल कुमार, रोहित कुमार, विजय कुमार, शीत कुमार आदि लोग उपस्थित थे। 

...शहर के इन आश्रमों में भी मनाई गई जयंती
जयंती समारोह संतमत सत्संग आश्रम नेवालाल चौक, संतमत सत्संग आश्रम फ्लाेर मिल, संतमत सत्संग आश्रम गुलाबबाग,  श्रीधरबाबा संतमत सत्संग आश्रम गुलाबबाग के हंसदा, महर्षि मेंहीं ज्ञानयोग ब्रह्मचारिणी आश्रम हंसदा गुलाबबाग, बरसौनी संतमत सत्संग आश्रम आदि में भी जयंती समारोह भव्य रूप से मनाया गया। इधर केनगर प्रखंड मुख्यालय स्थित संमतम सत्संग मंदिर केनगर के नए भवन को भव्य रूप से महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की जयंती मनाई गई। इस मौके पर पूज्य धीरेंद्र ब्रह्मचारी, पूज्य सुरेंद्र बाबा, पूज्य दशमू बाबा ने लोगों को महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के बताए मार्ग पर चलने की अपील की। 

...महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का संक्षिप्त जीवनवृत
जयंती समारोह के मौके पर लाला प्रसाद रजक ने महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का संक्षिप्त जीवनवृत लोगों के सामने रखा। महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज ऋर्षियों और संतों की दीर्धकालीन अविच्छिन्न परंपरा की एक अद्भूत आधुनिकतक कड़ी के रूप में परिगणित है। भागलपुर के पावन गंगा तट पर अवस्थित इनका भव्य विशाल आश्रम आज अध्यात्म ज्ञान की स्वर्णिम ज्योति चतुर्दिक बिखेर रहा है। महर्षि मेंहीं का अवतारण विक्रमी संवत 1942 के बैसाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि तदनुसार 28 अप्रैल 1885 मंगलवार को बिहार राज्यान्तर्गत मधेपुरा जिले के उदाकिशुनगंज थाने के खोखकी श्याम (मझुआ) ग्राम में अपने नाना के यहां हुआ था। आपके पूज्य पिता कायस्थ कुलभूषण स्व बाबू बबुजन लाल दास जी तथा सौभाग्यशालिनी माता स्व श्रीमती जनकवती थी जो पूर्णिया जिले के सिकलीगढ़ धरहरा के निवासी थे। उन्हें जन्मजात सिर पर सात जटाएं थी। जो प्रतिदिन कंघी से सुलझा दिए जाने पर भी पुन: प्रात:काल अनायास सात जटाएं बन जाती थी। चार वर्ष की अवस्था में ही उनकी माता परलोक सिधार गई। पांच वर्ष की अवस्था में कुल पुरोहित द्वारा आपका विधिवत मुंडन संस्कार किया गया। उनकी प्राथमिक शिक्षा का आरंभ कैथी लिपि से हुआ। 11 वर्ष की अवस्था में पूर्णिया जिला स्कूल में विद्याध्ययन के लिये भर्ती कराया गया। विद्याध्ययन काल में आपकी अभिरूचि आध्यात्मिक ग्रंथों के अध्ययन एवं पूजा ध्यान की ओर अधिकाधिक बढ़ती गई। वे 1904 की 4 जुलाई को प्रवेशिका परीक्षा दे रहे थे। उस दिन अंग्रेजी की परीक्षा थी। प्रश्नपत्र में निर्माणकरता शीर्षक पद्य की व्याख्या लिखने को कहा गया था। उन्होंने अंग्रेजी में ही व्याख्यान किया जिसका अर्थ है हमलोगों का जीवन मंदिर अपने प्रतिदिन के सुकर्म या कुकर्म रूपी ईंटों से बनता या बिगड़ता है। जो जैसा कर्म करता है उसका जीवन वैसा ही बन जाता है। इसलिए हमलोगों को भगवद्भजन रूपी सर्वश्रेष्ठ ईंटों से अपने जीवन मंदिर की दीवार का निर्माण करते जाना चाहिए। अंग्रेजी का व्याख्यान लिखकर वे अंत में देह धरे कर यहि फल भाई, भजिय राम सब काम बिहाई लिख दी और परीक्षा हॉल से निकल गए। परीक्षा भवन से बाहर आकर व अपने मानव जीवन को सफल बनाने के लिए अज्ञात पथ पर ईश्वर भक्ति के सही और पूर्ण ज्ञान की खोज के लिए चल पड़े। वे मुरादाबाद निवासी परमसंत बाबा देवी साहब के दीक्षित शिष्य होकर साधना में निरत रहने लगे। महर्षि मेंहंीं को बाबा देवी साहब के रूप में सच्चे गुरू मिल गए। उन्होनंे साधना के लिए ज्ञान योग युक्त ईश्वर भक्ति को स्वीकार किया। इनकी साधना मुख्यरूप से मानस जप, मानस ध्यान, दृष्टि योग एवं सुरतशब्द योग की है। महर्षि मेंहीं ने दृष्टि योग को बिंदु ध्यान बताया है। उन्होंने संतमत सिद्धांत एवं गुरू कीर्तन, रामचरितमानस सार सटीक, सत्संग योग, भजनावली, ईश्वर का स्वरूप और उसकी प्राप्ति वेद दर्शन योग आदि  जैसे दर्जनों पुस्तकों की रचना की। वे 101 वर्ष पूरे कर 8 जून 1986 रविवार को अपने पंच भौतिक शरीर का त्याग कर परलोग सुधार गए। कुप्पाधाट आश्रम में उन्होंने शरीर का त्याग किया था। जहां आज भव्य आश्रम है। लोग वहां जाकर अपने को घन्य समझते हैं।

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