बिहार : एमआरपी की आड़ में दुकानदार मनमौजी कर रहे हैं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 20 जुलाई 2019

बिहार : एमआरपी की आड़ में दुकानदार मनमौजी कर रहे हैं

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पटना, 17 जुलाई। आर्शीवाद शुद्ध चक्की का आटा है.इस तरह से प्रचारित करके आटा को पॉकेट में बंद करके बेचा जा रहा है कि यह विशुद्ध सौ प्रतिशतआटा ही है. इसमें मैदा की मिलावट नहीं है. किसी चीज का शून्य प्रतिशत मिलावट है. बाजार में 5 और 10 किलोग्राम का पैक है. 5 किलो आटा का 190 और 10 किलो 370 का एमआरपी अंकित है.

एमआरपी की आड़ में दुकानदार मनमौजी कर रहे हैं
इस समय केंद्र और राज्य में एनडीए की सरकार है. इस डबल इंजन की सरकार के पास साहस नहीं है कि बाजार भाव में नियंत्रित कर सके. हाल यह कि उत्पादक एमआरपी के नाम पर विक्रताओं को खुली छूट दे दी है मनमौजी ढंग से उपभोक्ताओं को लूटने के लिए. एमआरपी पारदर्शी नहीं है जिसे आसानी से पढ़ा और समझा जा सके. चोली के पीछे क्या है उसी तरह लाल रंग के पीछे है? कीमत ढूढ़ते ही रह जाना पड़ता है.

 हर दुकान में अलग-अलग दाम वसूल रहे हैं
हर दुकान में अलग अलग भाव है. 5 किलो का  न्यूनतम निर्धारित मूल्य 190 रू. और 10 किलो 370 रू. है.यह भाव आर्शीवाद नामक पॉकेट वाला आटा का है. इस पॉकेट में न्यूनतम मूल्य निर्धारित दुकानदारों के हित में हैं. दुकानदार 5 किलो पैक आटा 160,165 और 170 रू. में बेचते हैं. वास्तव में एमआरपी से कम है.मगर मनमौजी ढंग से कीमत बटोरते हैं.   अब 10 किलो पैक आटा पर नजर डाले. एमआरपी 370 रू. के विरूद्ध दीघा में 325, नवाबकोठी में 330, मस्जिद के पास 335, मखदुमपुर में 340 और यहीं के अन्य दुकानदार 355 रू. ले रहे हैं. अब खुद ही निर्णय करे कि 370 रू.वाला 325 रू.में बेच रहा है तो उसे कितना में मिला होगा?  इससे साबित होता है कि दुकानदार मनमौजी ढंग से रकम बटोर रहे है, तब न दीघा से मखदुमपुर के चुनिंदा दुकान से भाव जानने का प्रयास किया. जब वह 325 रू. बेच रहा है तो कोई 5, तो कोई 10, तो उससे अधिक 15 और सबसे अधिक 20 रू.पॉकेट में सेंधमारी कर रहे है.

उपभोक्ता जाय तो जाय किधर?
बिहार सरकार का नियंत्रण बाजार पर नहीं है. विक्रेता मिलकर क्रेताओं को लूटने में लग गए हैं. मनमौजी कीमत बटोरने में लगे हैं. दुकान में दुकानदारों कीमत तालिका लगा भूल गये हैं. वहीं निर्धारित न्यूनतम मूल्य से अधिक राशि ले रहे हैं. इन पर लगाम लगाने वाले विभाग किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये हैं.इसके आलोक में उपभोक्ता जाय तो जाय किधर?

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