अरुण कुमार (आर्यावर्त) बिहार सरकार के आंतरिक बातों का खुलासा कुछ इस प्रकार है जो कि यह दर्शाता है कि माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा के साथ साथ माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी असंतुष्ट हैं। नीतीश ने मतगणना के बाद ही तय कर लिया था कि भाजपा से दूरी बना लेनी है शायद? क्या सरकार गठन के दिन मंत्रिमंडल में शामिल होने पर हां/ना और जिच महज दिखावे की चीज थी? संंकेत तो यही कहते हैं। यूं तो जदयू के सरकार में शामिल होने से इन्कार के बाद से ही ऐसे कयास लगाए जाते रहे हैं कि नीतीश भाजपा से अलग होने की तैयारी में हैं,लेकिन हाल में चौकाने वाले खुलासे ने साबित ही कर दिया है कि यह महज कयास नहीं है।जदयू के नेतृत्व और खासकर नीतीश कुमार ने पहले ही तय कर लिया था कि भाजपा और उसके संगठनों से दूरी बनानी है।और तो और,संघ और विहिप सहित डेढ़ दर्जन संगठनों की सीआइडी से निगरानी की प्लानिंग मोदी के शपथग्रहण से पहले ही हो गई थी।एक ओर वे मंत्रिमंडल में शामिल होने केे बारे में बयान दे रहे थे और अंदरखाते संघ,विहिप बजरंग दल जैसे संगठनों की खुफिया जांच केे आदेश भी जारी कर दिए गए थे। बात समझने के लिए और थोड़ा पीछे चलिए…। आपको याद दिलाते हुए ये कहना चाहूंगा कि शायद आपको याद होगा कि 23 मई को मतगणना हुई थी और 30 मई को मोदी मंत्रिमंडल का शपथग्रहण हुआ। 30 मई को दोपहर बाद तक सबको उम्मीद थी कि जदयू सरकार में शामिल होगी,नीतीश ने एक दिन पहले ही स्पष्ट बयान दिया था कि जदयू सरकार में शामिल होगी लेकिन हाल में पुलिस महकमे से ऐसी जानकारी निकल कर सामने आई है कि बिहार सरकार के गृह विभाग ने संघ और उससे जुड़े संगठनों की खुफिया निगरानी की प्लानिंग के साथ इन संगठनों के बारे में पूरी जानकारी तलब की थी। गृह विभाग अभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जिम्मे है और इस जानकारी के लीक होने के बाद नीतीश-भाजपा के रिश्तों में खटास का नया दौर शुरू हो सकता है। मामला सार्वजनिक होने के बाद जदयू तत्काल बचाव की मुद्रा में आ गया है। टाइम्स ऑफ इंडिया और नवभारत टाइम्स की वेबसाइट पर दी गई खबर के मुताबिक, सरकार गठन से दो दिन पहले ही यानी 28 मई को ही सीआइडी (बिहार पुलिस की विशेष शाखा) के पुलिस अधीक्षक ने सभी डीएसपी और जिला विशेष शाखा पदाधिकारियों को पत्र लिख कर आरएसएस और उससे जुड़ी संगठनों के बारे में सात दिन के अंदर पूरी जानकारी देने को कहा था। पत्र में दिए निर्देश के मुताबिक इन संगठनों के कार्यकलाप के साथ इनके सक्रिय सदस्यों के नाम,पते,फोन नंबर और सदस्यों के पेशे के बारे में जानकारी मांगी गई है।पत्र में इसेे अतिआवश्यक बताया गया है।
इन संगठनोंं के बारे में मांगी खुफिया जानकारी
न्यूज एजेंसी एएनआइ की वेबसाइट पर विशेष शाखा मुख्यालय से जारी पत्र की जो प्रति उपलब्ध है उसके मुताबिक सीआइडी के अधिकारियों से कहा गया था कि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अतिरिक्त विश्वहिंदूू परिषद, बजरंग दल,हिंदू जागरण समिति,धर्म जागरण समन्वय समिति,मुस्लिम राष्ट्रीय मंच,हिंदू राष्ट्रीय सेना,राष्ट्रीय सेविका समिति,शिक्षा भारती,दुर्गा वाहिनी,स्वदेशी जागरण मंच,भारतीय किसान सेना,भारतीय मजदूर संघ,भारतीय रेलवे संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद,अखिल भारतीय शिक्षक महासंघ और हिंदू महासभा केे बारे में पूरी जानकारी सात दिनों के अंदर दें।उल्लेखनीय है कि ये सभी संगठन भाजपा और संघ से जुड़े हैं और इनमें बड़ी संख्या में सरकारी अधिकारी और कर्मचारी भी जुड़े हुए हैं।खुफिया जानकारी और इसके जरिए गुपचुप निगरानी की इस प्लानिंग के सार्वजनिक होने के बाद भाजपा और जदयू के रिश्ते और तल्ख होने के संकेत हैं। दोनों दलों की ओर से इसपर संतुलित टिप्पणी की गई है।जदयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने कहा कि इसे रूटीन कार्यवाही माननी चाहिए,सरकार इस तरह की सूचनाएं समय-समय पर इकट्ठा करती रहती है। केंद्र सरकार भी ऐसा करती है इसमें किसी संगठन की निगरानी जैसी कोई बात नहीं है। उधर भाजपा के एक नेता ने तल्ख शब्दों में कहा-जितना दिख रहा है बात उतनी ही नहीं है, संघ की निगरानी के पीछे कोई सोची समझी रणनीति है।उधर इस प्रकरण के सार्वजनिक होने के बाद से लोगों की प्रतिक्रियाएं भी खूब आ रही हैं।एक पाठक ने टिप्पणी की है-का हो चचा,ई का करा रहे हैं? एक ने कहा कि नीतीश ऐसा ही करते हैं। मोदी से उनका वैर पुराना है। एक की राय में सरकार केवल बदले की रणनीति पर काम कर रही है।जीरो गवर्नेंस, वनली रिवेज(जीरो गवर्नेंस,केवल बदला)।उल्लेखनीय है कि नीतीश ने मोदी के पहली बार पीएम बनने पर 2014 में ठीक मतगणना के दिन ही (16 मई) को बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी छो़ड़ दी थी और जीतनराम मांझी को सीएम बना दिया था। बाद में घोर विरोधी लालू प्रसाद से हाथ मिलाकर विधानसभा का चुनाव लड़कर सत्ता में वापसी की। जब राजद से नहीं बनी तो भाजपा से मिलकर सरकार बरकरार रखी।बिहार में विधानसभा चुनाव का चुनाव अगले साल होना है और हालिया संकेत यह बताने लगे हैं कि नीतीश और भाजपा के रिश्तों में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा।

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