आम चुनाव में अप्रत्याशित जीत के बाद टकटकी लगाए शेयर बाजार और निवेशकों की उम्मीद पर पानी फेरते हुए वित्तमंत्री ने जो बजट पेश किया उसके एवज़ में निवेशकों के लाखों करोड़ो रूपये का नुकसान झेलना पड़ा। आग में घी का काम करते ट्रम्प के ट्वीट्स भी बाजार में कोहराम मचाने में अपनी मौजूदगी दर्ज कराते रहे। व्यापर युद्ध के इस खेल में जीत अमेरिका के होगी या चीन की फैसला होना अभी बाकी हैं लेकिन एक बात तो निश्चित हैं और वो है खुदरा निवेशकों का नुकसान। बतौर रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण का कार्यकाल शानदार था। उनकी कार्यशैली को खूब सराहा गया। शायद इसी विश्वास के चलते प्रधानमंत्री ने उन्हें वित्तमंत्रालय सौंपा। मंत्रालय तो बदला लेकिन विचार पद्धति बदलने में शायद देर हो गयी और खामियाजा निवेशकों को उठाना पड़ा। पिछले हप्ते प्रधानमंत्री कार्यालय के हस्तछेप के बाद वित्तमंत्री द्वारा ' भूल सुधर बजट ' पेश किया गया जिसमें कुछ पुराने फैसलों को खतम करते हुए बजट पूर्व स्तिथि बना दी गयी। जहाँ FPI पर बढ़ाया गया सरचार्ज वापस ले लिया गया साथ ही घरेलू निवेशकों को LTCG और STCG पर राहत दी गयी। बैंकिंग, NBFC और ऑटो सेक्टर को भी राहत देने की कोशिश की गयी। हालांकि इससे सेंटीमेंट में सुधार तो जरूर हुआ लेकिन लम्बे समय में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी हैं। वित्तमंत्री के इस फैसले से अर्थव्यवस्था ने राहत की साँस ली है लेकिन क्या इससे घरेलू खपत को बढ़ावा मिलेगा ? इस सवाल का जवाब आने वाले समय मेंमिलेगा। घरेलू खपत को बढ़ाने में रोज़गार की सबसे अहम भूमिका होती है। परन्तु रोज़गार के मोर्चे पर स्तिथि बहुत अच्छी नहीं हैं। बजट से ' भूल सुधर बजट ' तक के इस लघु कथा के अंत में निवेशकों ने वित्तमंत्री को धन्यवाद तो बोला लेकिन प्रेस वार्ता के दौरान वह कुछ सहज नहीं दिखरहीं थी। क्या यह उनके नीतिगत हार को दर्शाता हैं ? आप इसका विश्लेषण कीजिये। एक बात साफ है की प्रधानमंत्री 2024 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना चाहते हैं और इस सपने को अमली जामा पहनाने के लिएप्रधानमंत्री कार्यालय किसी भी मंत्रालय के कामकाज और नीतिगत फैसलों में दखल देने से नहीं हिचकेगा।
मंगलवार, 27 अगस्त 2019
आलेख : सरकार की हार में बाज़ार की जीत
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