विशेष : दृष्टि का सखी स्वावलम्बन कार्यक्रम - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 1 सितंबर 2019

विशेष : दृष्टि का सखी स्वावलम्बन कार्यक्रम

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सब्जियों का एक बैग खरीदना इससे अधिक फायदेमंद कभी नहीं हो सकता थाद्य  खेत से ताज़ी और हरी सब्ज़ियां चुन कर उन्हें एक बैग में आपके दरवाजे पर डेलिवर किया जानाए न सिर्फ आपको एक बेहतरीन उत्पाद के अनुभव से जोड़ता है पर साथ आपके लिए एक मौका है अपने लिए और अपने आस.पास एक अच्छी और नेक दुनिया बनाने का ।  यहाँ हम स्पष्ट कर दें कि यह एक और नयी इ.कॉमर्स कम्पनी का किया गया वादा नहीं बल्कि एक सामाजिक संस्था  की  प्रतिबद्धता  है  जो  वाराणसी  के  गांवों  की  महिला  किसानों  की  ओर  से  तैयार हैं हर चुनौती का सामना करने के लिए । अपने एंड्रॉइड फोन पर एक साधारण ऐप डाउनलोड करकेए आप गांव में ताजी तैयार  हरी  सब्जियांए  दूधए  पनीरए  घी  अनाजए  मसाले  और स्नैक्स जैसे उत्पाद अपने घर पर सीधे  पा सकते हैं । ख़ास बात यह कि  ये  सभी  उत्पाद  छोटे  समूहों में  एकत्रित  और प्रशिक्षित  महिलाओं द्वारा विभिन्न ग्राम . हब ;केन्दोंद्ध में उत्पादित और पैक किए जाते हैं। समूहों द्वारा स्थापित ये सूक्ष्म ;या अति.लघुद्ध उद्यमए आज हमारे सामने खड़े एक बड़े प्रश्न का उत्तर हो सकते हैं द्य रोजगार और जीविका हमारे गावों से पलायन कर रहे है और साथ ले जा रहे हैं हज़ारों लाखों परिवार और हमेशा से स्वावलम्बी रहे हमारे गावों की अपनी  पहचानद्य जहां एक ओर ऐप आधारित तकनीक  के उपयोग  ने भारत  में  कई  करोड़  रूपयों के व्यापार को साकार किया है वहीँ इस तकनीक में इतनी क्षमता है कि जल्द ही हमारे सामने ऐप समर्थित उद्यम से जुड़ीष् एक करोड़  आजीविका  बनाने की  कहानी  बन  सकती है।  मॉडल सरल है। महिला उत्पादकों  को  ऐप  में  पंजीकृत  किया  गया है। भूमिहीन  महिलाओं को  सूक्ष्म समूह बनाकर खरीदए गुणवत्ताए छँटाईए पैकेजिंग आदि के कार्यों  के लिए प्रोत्साहित किया  जाता है। वितरण मार्गों के आधार  पर  तैयार  उत्पादों  को  इन  समूहों  से  उठाया  जाता  है  और  ग्राहकों  के  घर.घर  पहुंचाया  जाता  है।  उत्पादकों  और  उपभोक्ताओं  के बीच  लाभ  साझा करने वाले इस मॉडल का उद्देश्य साझा समृद्धि बनाना है। 

स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो विज्ञान एवं परंपरा दोनों ही आधार पर यह सामने आ चुका है कि ष्स्थानीयष् यानि आस.पास का और ष्मौसमीष् भोजन ही अंतर्निहित  शक्ति और स्वस्थ जीवन का मूल.मंत्र होता है। आपने देखा भी होगा कि हमारे शरीर को अपने आप ही उन तत्वों की ज़रुरत पड़ती है जो आस.पास ;स्थानीय स्तर परद्ध उपलब्ध होते है। हालांकिए अब हमारी पहुँच इतनी बढ़ गयी है कि धीरे धीरे सम्पूर्ण विश्व के खाने हमारी प्लेट में शामिल हो रहे हैंद्य इसी का परिणाम है कि  अब  हम  उन  उत्पादों  के  लिए  तरसते हैं  जो  डिब्बाबंद  होते  हैं  और  दूर  स्थानों  से  लाये जाते हैं। और आप तो यह जानते ही होंगे कि रासायनिक परिरक्षक ;प्रिज़र्वेटिवद्ध कच्चे या पैक किए गए विभिन्न उत्पाद  हमारी जैविकी ;शारीरिकद्ध के साथ साथ हमारी रासायनिकी ;मानसिकद्ध को भी नुकसान पहुंचाते हैं पिछले २.३ दशक में कैंसर जैसी कई जानलेवा बीमारियों का अचानक ही तेज़ गति से फैलाव हुआ हैद्य इस खतरनाक वृद्धि का कोई एक कारण बता पाना  मुश्किल  हैए लेकिन  हमारे भोजन में तेज़ी से शामिल होते  रसायन और अप्राकृतिक वस्तुओं का सेवन शायद सबसे बड़ा अपराधी है।  प्रकृति हमें स्वयं ही वह सारे पदार्थ हमारे आस.पास में दे देती है जो हमारे  स्वस्थ  जीवन  के लिए आवश्यक होते हैं द्य  इसलिएए  स्थानीय रूप सेए हमारे आस पास में  उगाए  गए  भोजन  का  सेवन  करकेए  हम  न  केवल  अपनी  समृद्धि  को  उन लोगों  के साथ  साझा  करते हैंए  जो आय के स्तर पर हुसे दूर हैंए बल्कि हमारे जीवन में हम कुछ और अधिक ऊर्जावान और उत्साही वर्षों को  भी जोड़ते हैं। 

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यही नहीं जहाँ बड़े ब्रांडों द्वारा लगातार किया जा रहा प्रचार.प्रसार हमें  अधिक  से अधिक  उपभोग के लिए प्रेरित करता हैए वहीँ सामाजिक संस्थाए जो गावों के इन सूक्ष्म उद्यमों  को आगे बढ़ने में सक्षम बना रही हैए हमसे अनुरोध कर रही है कि हम हर तरह के उत्पादों के उपभोग में अधिक सचेत रहें और ज़िम्मेदारी से संतुलित यानि नपा.तुला उपयोग करें संस्था वाराणसी के ३ ब्लाकों काशी विद्द्यापीठ अराजीलाइन तथा हरुआ के लगभग 100 गॉवो में लघु किसानोए महिलाओँए युवाओ एवं समाज के वंचित वर्गों के साथ मिलकर उनके सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान हेतु कार्य कर रही हैप्सं स्था द्वारा बच्छावए देलहानाए करौताए ककरहियाए जयापुर एवं जनसा ग्रामो में ग्रामीण विकास केन्द्रो की स्थापना की गई है जहाँ पर कौशल विकास हेतु विभिन्न कार्क्रमए गावों में लघु उत्पादन केंद्रों की स्थापनाए  ग्रामीण लघु उत्पादन केन्द्रो का सशक्तिकरण तथा उत्पाद को बाजार से जोड़ने हेतु गतिविधियां संपन्न हो रही हैप्   ग्रामीण लघु उद्द्योगी समूहों द्वारा गावों में दस उत्पादों का उत्पादन किया जा रहा है जिनमे मुख्य रूप से ताज़ी सब्ज़ी का बैग ;टमहहपम ठंहद्धए अनाज का बैग ;थ्ववक ळतंपदद्धए दूधए दूध से निर्मित अन्य उत्पादए मसालेए रेडीमेड कुर्तीए खादी वस्त्रए होम फर्निशिंगए गार्डनिंग और होम फर्नीचरण्   छोटे किसानो द्वारा खेत से ताज़ा सब्ज़ियां प्रातः काल तोड़ कर गांव के महिला समूह को दी जाती है तथा महिला समूह सब्ज़ियों को छांटकरए साफ़ करकेए निर्धारित वजन के अनुसार तौल कर सब्ज़ी के बैग में पैक करती है तथा सप्प्लाई चैन टीम द्वारा सब्ज़ियों का बैग 7 बजे से 9 बजे के बीच आपके घर पर डिलीवर कर दिया जाता हैण्

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दृष्टि फाॅउंडेषन मानव जीवन की तीन मूलभूत आवष्यकताओं रोटी, कपड़ा एंव मकान की गुणवता पूर्ण उपल्बधता सुनिष्चित करने के लिये आर्थिक एवं समाजिक रुप से पिछडी ग्रामीण महिलाओं एवं पुरुषों के कौषल एवं दक्षता में वृद्वि करके विभिन्न प्रकार के उत्पादों के उत्पादन एवं उनके विपणन के लिये उनके साथ हर स्तर पर कार्यरत हैं। ऐसे ग्रामीण महिला एवं पुरुष जो की आर्थिक रुप से पिछडे हुऐ है तथा किसी भी प्रकार का कौषल/हुनर और योग्यता रखते है या अपना स्वयं का रोजगार श्ुारु करना चाहते है ओर उसके लिये यदि उनको किसी विषिष्ट प्रकार के प्रषिक्षण एवं सहायता की आवष्यकता होती है तो दृष्टि फाॅउंडेषन उनकी क्षमताओं को पहचान कर उनके कौषल में विषिष्ट प्रकार के प्रषिक्षण के माध्यम से वृद्वि करके उनको उनके उत्पादों के उत्पादन से उनके पैकेजिंग, रख रखाव एवं उनके विपणन के कार्य में हरसंभव सहायता उपल्बध कराती है। ग्रामीण समूहों के द्वारा जो उत्पादन किया जाता है वो उनकी आजीविका का एक साधन हैं इसलिये उत्पादन की गुणवता से वो किसी भी प्रकार से समझौता नहीं करते है। उत्पादों की उच्च गुणवत्ता को उनके द्वारा ही सुनिष्चित किया जाता हैं। किसी भी वस्तु का उत्पादन जो हमारे ग्रामीण परिवेष के परिवार कर रहे है वो पूर्ण रुप से व्यवसायिक नहीं है इस माध्यम से उनका एक नियत रोजगार सुनिष्चित होता है। वह उत्पादो को पूर्णतया स्वदेषी तकनीक से तैयार करने का प्रयास करते है और जहाॅ तक संभव हो सके वो रासायनिक खाद और कीटनाषकों का प्रयोग नहीं करते है और यदि अत्यंत आवष्यकता होती भी है तो वह कम्पोस्ट खाद व अरसायनिक कीटनाषकों का प्रयोग करते हैं। क्योंकी वो जो उत्पादन कर रहे है वो व्यवसायिक उत्पादन नहीं हैं। उत्पादन समूह के द्वारा जो भी उत्पाद बनाये जा रहे है उनके साथ उनकी भावनायें भी जुडी हुई है। इसलिये ये जो उत्पाद बनाये जा रहे है वो बहुत ही विषिष्ट है।  इसलिये जो उत्पाद वो पैक कर के ग्राहको को पहुचा रहे है वो कोई उत्पाद या वस्तु ना हो कर के एक संदेष है जो की ग्रामीण परिवेष के द्वारा शहरी व्यवस्था को खुद के होने का अहसास कराना मात्र है और वह इन उत्पादो के माध्यम से यह संदेष पहुचाने का प्रयास कर रहे है की अगर वो ग्रामीण परिवेष की मदद करे तो एक एसे बेहतर कल का निर्माण किया जा सकता है जहां दोनो परिवेष आपस में मिलकर संयुक्त रुप से समृद्व हो सकते हैं
दृष्टि फाॅउंडेषन के बारे में
दृष्टि फाॅउंडेषन एक समाजसेवी संस्था हैं जो वर्ष 2000 से मानव जीवन की मूलभूत आवष्यकताओं रोटी, कपड़ा एंव मकान की समाज के हर वर्ग के लिये अलग अलग स्वरुपों में उपल्बधता एवं उसका न्यासंगत उपयोग के लिये कार्यरत है इन आवष्यकताओं का न्यासंगत एवं पर्यावरण के अनुकूलनीय उपयोग सुनिष्चित हो सके उसके लिये दृष्टि फाॅउंडेषन ग्रामीण परिवेष को शहरी परिवेष में आपसी सहमती से सम्बंध स्थापित करने के लिये प्रयासरत है।  भारत एक कृषि प्रधान देष है और कृषि पर ही भारत की अर्थव्यवस्था निर्भर करती है भारत की कुल जनसख्यां का लगभग 68ः भाग गाॅवों में निवास करता हैं। भारत के हर वर्ग के साथ साथ भारत के किसानों का, ग्रामीण महिलाओं का एवं पुरुषों का भारत की अर्थव्यवस्था में अभूतपूर्व योगदान हैं। यहाॅ तक की हमारी शहरी व्यवस्था भी गाॅवों पर ही निर्भर करती है। आज 21वी सदी में हमारा ग्रामीण परिवेष एवं शहरी परिवेष अति तीव्र गति से परिवर्तित हो रहा है जिसके कारण आज ग्रामीण परिवेष मे रहने वाले हर महिला एवं पुरुष अपने अच्छे भविष्य की आषा एवं बेहतर रोजगार की तलाष में शहर की तरफ आर्कीषत हो रहा है, जबकी वो इस बात से अनजान है की बेहतर भविष्य एवं रोजगाार उनके ग्रामीण परिवेष में ही मौजूद है केवल उनको उसको पहचानना है, समझना है, और उसका बेहतर प्रयोग करना है। इस बात को जानने, समझने एवं समझाने के लिये एक विषिष्ट प्रकार की सोच एवं दृष्टि की आवष्यकता है और दृष्टि फाॅउंडेषन उसी सोच एवं दृष्टि के साथ सभी गाॅवों एवं शहरों की महिलाओं तथा पुरुषों के साथ जो की आर्थिक एवं समाजिक रुप से पिछडे हुऐ है उनके साथ संयुक्त रुप से कार्य कर रही हैं। गरीबी के चक्र से निकलने के लिए ग्रामीण गरीबों में गरीबी से बाहर आने की तीव्र इच्छा होती है तथा गरीबी के चक्र से निकलने के लिए निरंतर संघर्ष तथा उपाय खोजते रहते है परन्तु स्थानीय स्तर पर मौजूद संसाधनों तक पहुंच न होना एवं उचित सूचनाओं का अभाव उन्हें आगे बढ़ने से रोकता रहता है गरीबी दूर करने के लिए महत्वपूर्ण है की ग्रामीणों के परम्परागत कौशलों एवं क्षमताओं की पहचान कर सामाजिक गतिशीलता और मजबूत स्थानीय सामाजिक संस्थानों का निर्माण एवं विस्तार किया जाये सामाजिक गतिशीलताए संस्था निर्माण और सशक्तीकरण प्रक्रिया को प्रेरित करने और ज्ञान प्रसारए कौशल निर्माणए ऋण तक पहुंचए विपणन तक पहुंच और अन्य आजीविका सेवाओं तक पहुंच के लिए एक समर्पित और संवेदनशील समर्थन तंत्र की आवश्यकता होती है जिसको की संस्था द्वारा समाज के सहयोग से विकसित किया जा रहा है।

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