जमशेदपुर : पारंपरिक वाधयंत्रों की खरीदारी करनी हो तो आंधारझोर गांव जरूर जाएं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


मंगलवार, 21 जनवरी 2020

जमशेदपुर : पारंपरिक वाधयंत्रों की खरीदारी करनी हो तो आंधारझोर गांव जरूर जाएं

लगभग 200 वर्षों से इस पेशे से जुड़ें हैं आंधारझोर के ग्रामीण
traditional-instrument-jamshedpur
प्रमोद कुमार झा : आर्यावर्त संवाददाता पूर्वी सिंहभूम जिले के बोड़ाम प्रखंड अंतर्गत बोड़ाम पंचायत स्थित आंधारझोर गांव में पारंपरिक वाधयंत्रों का निर्माण लगभग 200 वर्षों से होता आ रहा है। ढ़ोल, नगाड़ा, मांदर, मृदंग, तबला, कीर्तन खोल, नाल, सिंघबाजा, डमरू, बच्चों के लिए ढ़ोलकी, तासा, साईड ड्रम, रेगड़े, भांगड़ा ढ़ोल जैसे पारंपरिक वाधयंत्रों के निर्माण में आंधारझोर के लगभग 15 परिवारवाले आज भी जुडे़ हैं। वाधयंत्र निर्माण में पुरुषों के साथ-साथ महिलायें भी हाथ बंटाती है। पुरुष जहां वाधयंत्रों को स्वरूप देते हैं तो उसे निखारने हेतु पेंटिंग का काम महिलाओं के जिम्मे रहता है। आंधारझोर गांव की महिलायें भी इस पेशे से जुड़कर अपने परिवार के भरण-पोषण के साथ-साथ वाधयंत्र निर्माण कला को जीवित रखने में अपना सहयोग देती हैं।  

पंजाब, बंगाल, ओड़िशा से आते हैं वाधयंत्र का मरम्मत कराने, कुशल वाधयंत्र कारीगर सम्मान प्राप्त हैं मेघनाथ रूहीदास
बंशी बोस म्यूजिक फाउंडेशन ने आंधारझोर के मेघनाथ रूहीदास को कुशल एवं अनुभवी वाधयंत्र कारीगर के रूप में सम्मानित एवं पुरष्कृत किया है। मेघनाथ रूहीदास ने बताया कि उनके पास पंजाब, बंगाल, ओड़िशा तथा अन्य राज्यों से भी लोग अपना वाधयंत्र मरम्मत कराने पहुंचते हैं। उन्होने बताया कि कुछ वाधयंत्रों का निर्माण जहां लकड़ी से होता है वहीं कुछ वाधयंत्र केवल मिट्टी और लोहे से भी बनाये जाते हैं। वाधयंत्रों के निर्माण हेतु जिन लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है उनमें शीशम, आम, कटहल, नीम आदि मुख्य हैं। 

जिला मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूरी पर है आंधारझोर, सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है
जमशेदपुर शहर से डिमना रोड होते हुए आंधारझोर गांव सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। डिमना से लगभग 20 किमी दूर प्रकृति की गोद में बसा आंधारझोर गांव वाधयंत्रों के निर्माण में विशिष्ट स्थान रखता है। ग्रामीणों ने बताया कि बच्चों में शिक्षा के प्रति जागृति तथा वाधयंत्रों के निर्माण से होने वाली कम आय के कारण अब लगभग 15 परिवार वाले ही इस पेशे से जुड़े हैं लेकिन वे इस निर्माण कला को जीवित रखना चाहते है। मनोहर रूहिदास, मेथवर रूहिदास, बादल रूहिदास, मोथुर रूहिदास, लक्ष्मण रूहिदास, भरत रूहिदास, संतोष रूहिदास आदि हैं जो वाधयंत्र निर्माण में जुड़े हैं। कच्चे माल की कमी और बाजार के अभाव के कारण वाधयंत्र निर्माण कारीगरों में बेरूखी तो है लेकिन इस पुश्तैनी कला को निखारने एवं पहचान देने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: