बच्चों को कम उम्र में शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दें : चारू कपूर - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

बच्चों को कम उम्र में शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दें : चारू कपूर

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नयी दिल्ली ,29 फरवरी, शास्त्रीय गायिका डा. चारू कपूर ने कहा है कि स्कूलों में संगीत प्रोत्साहन क्लबों को सही तरीके से शुरू किया जाना चाहिए ताकि युवा पीढ़ी शास्त्रीय पहलू से रूबरू हो सके और इसकी सराहना करे। हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन की विशारद तथा डागर बंधुओं एवं सविता देवी की शिष्या रही डा. कपूर ने कहा,“भारतीय शास्त्रीय संगीत को समय के साथ बदलने के लिए कुछ नया करना होगा, ताकि इसे जीवित रखा जा सके।” गजल, सूफी, भजन, सदाबहार नगमें और कविता गाने वालीं डा. चारू अपना कविता पेज ‘कुछ एहसास’ के नाम से चलाती हैं तथा वह गंगा-यमुना तहजीब पर भी लिखती हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या समकालीन पॉप या बॉलीवुड संगीत शास्त्रीय संगीत की विरासत और संस्कृति की चमक को चुरा रहे हैं तो डा. कपूर ने कहा,“ मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाती हूं, मैं युवा दिमाग के साथ काम करती हूं और मुझे लगता है कि इस तेज गति वाली दुनिया में, युवा सभी प्रकार के दबाव से निकलने के लिए हिप हॉप या ईडीएम के लिए समय निकालना चाहते हैं, ना कि शास्त्रीय संगीत जैसी गंभीर चीज़ों के लिए।” महज 16 साल की उम्र से प्रदर्शन करने वाली डा. कपूर से जब क्षेत्र में बड़े बदलावों के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा,“एक बड़ी तकनीकी छलांग अभी बाकी है।” उन्होंने कहा,“ मेरा पहला स्टेज प्रदर्शन छह साल की उम्र में हुआ था, जब मैंने फिल्म ‘शोर’ में ...एक प्यार का नगमा है... गाया था तो शास्त्रीय संगीत में मेरा औपचारिक प्रशिक्षण नौ साल की उम्र से शुरू हुआ।” उन्होंने कहा,“हाँ, प्रौद्योगिकी में बहुत बड़ी छलांग है, इसने संगीत पर भी आक्रमण किया है। अब, प्रौद्योगिकी का सहारा लेकर,वे लोग भी गायक बन गए हैं जिनका संगीत से कोई लेना देना नहीं रहा है।” इंटरनेट ने संगीत के पेशे को कैसे बदल दिया है, इस पर डा. कपूर ने कहा,“इंटरनेट ने आपको दुनिया से संपर्क करने की प्रकिया को बहुत आसान बनाया है,लोगों की पहुंच इस तक हो गई है और प्रौद्यौगिकी की बदौलत अब आपके वीडियो वायरल हो सकते हैं।” अब तक किए गए अपने संगीत प्रदर्शन को और अधिक मनोरंजक बताते हुए, बहुमुखी गायिका ने कहा,“लाइव प्रदर्शन बहुत सुखद होते हैं क्योंकि आपको दर्शकों से त्वरित प्रतिक्रिया मिलती है। वे फुट टैपिंग नंबरों पर ताली बजाने लगते हैं और एक उदास गीत या गज़ल पर भावुक हो जाते हैं।” शास्त्रीय परंपरा के समकालीन होेने पर उन्होंने कहा,“शुद्धतावादी होने के बजाय, राग आधारित ग़ज़ल, सूफ़ी, भजन आदि को आत्मसात किया जा सकता है जो इसकी पवित्रता को अक्षुण्ण बनाकर रखे हुए है मगर फिर भी समकालीन हैं। डा. कपूर की कविता ‘अमलतास’ एशियन लिटरेरी सोसाइटी द्वारा वर्डस्मिथ अवार्ड 2019 की विजेता रही है। 

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