- अकूत संपत्ति जमा कर चुके काॅरपोरेट घरानों से पैसा क्यों नहीं निकालती सरकार.
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पेट्रोल का दाम निगेटिव चले जाने के बावजूद भारत में मूल्य कम क्यों नहीं हो रहा!
पटना , भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि एक तो प्रधानमंत्री कोरोना पीड़ितों के लिए गठित पीएम केयर फंड का कोई हिसाब नहीं दे रहे हैं, दूसरे इस मद में अब सरकारी कर्मचारियों की महीने की एक दिन की सैलरी जबरदस्ती काट ली जा रही है. यह कहीं से उचित नहीं है. सरकार अपने कर्मचारियों की सैलरी काटने की बजाए देश में अकूत संपत्ति जमा कर चुके अंबानी-अडानी जैसे काॅरपोरेट लाॅबी से पैसे क्यों नहीं निकालती है! जाहिर सी बात है कि इस विकट संकट में भी वह काॅरपोरेटों को बचाने में, उन्हें सुरक्षा प्रदान करने में और आम लोगों की सैलरी काटने में लगी है. पहले यह बात आई थी कि सरकारी कर्मचारियों द्वारा महीने में एक दिन का वेतन पीएम केयर फंड में जमा करना स्वैच्छिक होगा. जो दान करना चाहते हैं, वे कर सकते हैं. लेकिन चुपके से मंत्रालय सभी कर्मचारियों की सैलरी काटने लगी. जब कुछेक जगहों से इसका विरोध हुआ तो सरकार कह रही है कि यदि कोई कर्मचारी अपनी सैलरी नहीं देना चाहता है, तो उसे लिख कर ऐसा देना होगा. यह बहत आश्चर्यजनक है. सरकार लिख कर क्यों चाहती है! क्या वह बाद में इन कर्मचारियों को निशाना बनाएगी! इससे संदेह और गहरा होता है. इसलिए, भाकपा-माले मांग करती है कि सरकार जोर-जबरदस्ती करना छोड़े. जो लोग स्वेच्छा से कोरोना पीड़ितों के लिए सहयोग करना चाहते हैं, उन्हीं का वेतन काटे. भाकपा-माले ने यह भी कहा कि आज दुनिया के अधिकांश देशों में लाॅकडाउन की वजह से तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमत में न केवल भारी गिरावट है बल्कि वह निगेटिव में चला गया है. सामान्य दिनों में मोदी सरकार पेट्रोल-डीजल आदि पदार्थों का दाम बढ़ाते हुए अंतर्राष्ट्रीय मूल्य वृद्धि का झूठा तर्क दिया करती थी. आज जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मूल्य में भारी गिरावट है भारत सरकार अपने यहां पुराने मूल्य पर ही पेट्रोलियम पदार्थ क्यों बेच रही है! क्या इसके जरिए वह इस कोरोना के संकटकालीन दौर में भी आम लोगों को तंग-तबाह नहीं कर रही है. भाकपा-माले की मांग है कि पेट्रोलियम पदार्थाें की कीमत में तत्काल कमी की जाए.
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