विशेष : घर वह होता है जहाँ हमारे पुरखों की नाल गड़ी हो - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

विशेष : घर वह होता है जहाँ हमारे पुरखों की नाल गड़ी हो

राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक लाइव कार्यक्रम के तहत #StayAtHomeWithRajkamal कार्यक्रम के अंतर्गत अबतक 118 साहित्यकार एवं साहित्य प्रेमी जुड़ चुके हैं। साथ जुड़कर लाइव के जरिए लोगों से किताब, गीत-संगीत एवं जरूरी विषयों पर बातचीत एवं मुलाक़ाते होती हैं। फ़ेसबुक लाइव लेखक-पाठक के रिश्ते को नई तरह से गढ़ रहा है। इसी सिलसिल में पाठकों से परस्पर जुड़ाव और संवाद को जारी रखते हुए राजकमल प्रकाशन वाट्सएप्प के जरिए ‘पाठ-पुनर्पाठ’ पुस्तिका साझा कर रहा है, जिसमें हर आस्वाद और हर विधा की रचनाएं शामिल होती हैं। यब पुस्तिका 60 से 112 पेज तक की होती है। पाठकों से मिल रहे फीडबैक से यह पता चलता है कि लॉकडाउन के दौरान मानसिक खुराक उपलब्ध कराने की राजकमल प्रकाशन की प्रतिबद्धता सही दिशा में आगे बढ़ रही है। इसके अलावा ब्लॉग, ई-बुक एवं अन्य वेबसाइट पर किताबों से अंश साझा कर लोगों के लिए पढ़ने और किताबों से जुड़े रहने कोशिश भी जारी है। इसी सिलसिले में लॉकडाउन के 28वें दिन राजकमल प्रकाशन के फ़ेसबुक लाइव पर खान पान से जुड़ा विशेष कार्यक्रम लेकर इतिहासकार पुष्पेश पंत हाज़िर हुए तो साथ ही लेखक शशिभूषण द्विवेदी और सदन झा ने की साहित्य की बातें।

बात पंजाबी पनीर से देशी पनीर की
लॉकडाउन का दूसरा पक्ष यह भी है कि घर पर रहकर अपनी जरूरतों को अपने आप पूरा करना। अगर आप परिवार के साथ हैं तो यह जिम्मेदारी और ख़ास हो जाती है कि कैसे कम चीज़ों से स्वाद और भूख दोनों को निभाया जा सके। ‘स्वाद-सुख’ का लक्ष्य यही है, ऐसे व्यंजनों को सामने लेकर आना जिसे आसानी से रसोई में मिलने वाले मसालों और सब्ज़ियों से बनाया जा सके।

मंगलवार की सुबह ग्यारह बजे ‘स्वाद-सुख’ कार्यक्रम में चर्चा का विषय था- पनीर।
home-and-litreture-web-seminar
घर हो या बाहर, अपनी रसोई, रेस्तरां या ढाबा, पनीर सर्वव्यापी है। शाकाहारी ढाबों की व्यंजन-सूची पनीर से शुरू होकर पनीर पर आकर ही ख़त्म होती है। आलम यह है कि आप पहाड़ पर चले जाइए या नार्थ ईस्ट। हर जगह रेस्तरां और ढाबों पर लोकल खाना ढूँढने से मिलेगा लेकिन, पनीर सबसे पहले मिल जाएगा। केरल में नारियल के तेल में तला हुआ और खूब सारे मसालों मे डूबा पनीर मसाला मिलता है, जो केरल के खाना पान के तरीकों से बिल्कुल भिन्न है। तमिलनाडु में पनीर 65 बहुत प्रचलित है। ‘स्वाद-सुख’ कार्यक्रम में लाइव बातचीत करते हुए पुष्पेश पंत ने कहा, “सच यह है कि पनीर शाकाहारियों का नॉन-वेज है। पनीर का चाइनिज़ रूप – चिली पनीर और पनीर मंचूरियन भी खाने वालों के बीच पसंद किया जाता है।“ दुखद यह है कि पनीर के पंजाबीकरण ने देशी पनीर के व्यंजनों को हासिए पर डाल दिया है। देशी पनीर के भिन्न प्रकारों के संबंध में जानकारी साझा करते हुए पुष्पेश पंत ने बताया कि कश्मीर का ‘चामन पनीर’ देशी पनीर में बहुत उल्लेखनीय है। (कश्मीरी में पनीर को चामन कहते हैं) ये चामन बहुत सारे रंगों में देखने को मिलता है, इसमें थोड़ी हरयाली भी होती है। चामन की कलिया और वोजीज चामन कश्मीरियों का पसंदीदा व्यंजन है। कश्मीर के दूसरे हिस्से में जो हिमाचल से जुड़ा है और लद्दाख वाले इलाकों में ‘कलाड़ी पनीर’ मिलता है, जो पंजाबी पनीर से बहुत अलग है। इसे दूध की रोटी भी कहते हैं। दरअसल, इसे तवे पर फैलाकर सुखाया जाता है। कलाडी कुल्चा इसका परिष्कृत संस्करण है। सिक्किम, दार्जीलिंग वाले इलाके में ‘चुरो’ नाम का पनीर देखने को मिलता है। वहीं पश्चिम बंगाल में ‘बंदेल पनीर’ खाने को मिलता है। हाल के दिनों में कलकत्ता के पांच सितारा होटलों ने इसे फिर से लाइमलाइट में ला दिया है। पुष्पेश पंत ने पनीर के संबंध में बातचीत करते हुए कहा कि, “स्वाद-सुख के कार्यक्रम में हम छेना की बात अलग से करेंगे लेकिन जरूरी है कि हम हमारे देशी पनीर को याद कर उसे वापिस से अपने जीवन का हिस्सा बनाएं।“

घर वह होता है जहाँ हमारे पुरखों की नाल गड़ी हो
घरबंदी की शांत दोपहर, बाहर से आती पक्षियों की आवाज़ में लैपटॉप पर चल रहे लाइव वीडियों की आवाज़ घूल-मिल जाती है। कहानियाँ पाठ, संगीत, भिन्न विषयों पर होने वाले लाइव कार्यक्रम लोगों के रोज़ के जीवन का अहम हिस्सा बन चुके हैं। मंगलवार की दोपहर राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक लाइव पर बातचीत करते हुए लेखक शशिभूषण द्विवेदी ने कहा, “लॉकडाउन में सुबह से शाम हो जाती है लेकिन दिन और तारीख़ का पता नहीं चलता। मेरे घर की बालकनी के ठीक सामने रेलवे ट्रैक है। ट्रेन की सीटियों से वक्त का पता चल जाता था। लेकिन अब हर तरफ शांति है। पहिया जो मानव इतिहास का अबतक का सबसे बड़ा अविष्कार माना जाता था अब थम गया है। एक जैविक शत्रु ने हम सभी की ज़िन्दगी बदल दी है।“ लाइव कार्यक्रम में शशिभूषण द्विदी ने अपने कहानी संग्रह ‘कहीं कुछ नहीं’ से ‘शालीग्राम’ कहानी का पाठ किया। कहीं कुछ नहीं कहानी संग्रह राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है। पोस्ट लॉकडाउन के बाद दुनिया कैसी होगी?  महामारी की सबसे बुरी मार झेल रहे प्रवासी मजदूरों के जीवन पर इसका कितना गहरा असर हो रहा है? यह सवाल न सिर्फ़ समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री, लेखक बल्कि आम मानस के मन में भी उठ रहे हैं। साहित्य और इतिहास के आधार पर विस्थापन से जुड़े कई सवालों की पड़ताल करते हुए लेखक सदन झा ने, राजकमल प्रकाशन के फ़ेसबुक लाइव के जरिए कहा कि, “हमने देखा लॉकडाउन के बाद लाखों की संख्या में मजदूर अपने घर की ओर लौट रहे थे। परेशान और हताश। जो लोग घर नहीं लौट सकें उनके लिए कहा जा रहा है कि लॉकडाउन के खुलते ही वो अपने घर जाएंगे, अपने लोगों से मिलने। बहुत संभव है कि इस परिस्थिति से बाहर निकलकर जब वो घर जाएंगे तो शायद फिर वो शहर वापस न लौंटे। ऐसे में हमारे शहर का रूप कैसा होगा?” सदन झा ने साहित्य में विस्थापन की कहानियों पर बात करते हुए बताया कि साहित्य और इतिहास लेखन में प्रवासी मजदूरों के साथ न्याय नहीं किया गया। उन्हें हमेशा आकांड़ों का हिस्सा माना गया। साहित्य में उनकी ख़ुद की सोच को बहुत कम जगह दी गई। विभाजन की पीड़ा से निकले साहित्य में विस्थापन की बात है। साथ ही गिरमिटिया साहित्य भी इनकी बात करता है। लेकिन मुख्यधारा के साहित्य में इसपर बहुत ज्यादा नहीं लिखा गया। सदन झा ने घर की अवधारणा पर बात करते हुए कहा कि, “घर वह होता है जहाँ हमारे पुरखों की नाल गड़ी हो। लेकिन मेरे जैसे लोग जिनके परिवार में पिछले दो सौ साल में कई-कई बार विस्थापन हो चुका है, कैसे तय करें कि हमारे पुरखों की नाल कहाँ गड़ी है। हममें से कौन कहाँ से आया है, जब यह स्पष्ट ही नहीं है तो फिर "अन्य" की बात कहाँ से आ जाती है!” उन्होंने कहा, “हम सब अप्रवासी है। हाल के वैज्ञानिक और ऐतिहासिक शोध इस बात की पुष्टि करते हैं कि हम अफ्रीका से निकलकर यहाँ तक पहुंचे। ऐसे में यह कौन तय कर रहा है कि कौन यहाँ का है, कौन नहीं?”

राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक लाइव कार्यक्रम में अब तक शामिल हुए लेखक हैं - विनोद कुमार शुक्ल, मंगलेश डबराल, उषा किरण खान, पुरुषोत्तम अग्रवाल, हृषीकेश सुलभ, शिवमूर्ति, चन्द्रकान्ता, गीतांजलि श्री, वंदना राग, सविता सिंह, ममता कालिया, मृदुला गर्ग, मृदुला गर्ग, मृणाल पाण्डे, ज्ञान चतुर्वेदी, मैत्रेयी पुष्पा, उषा उथुप, ज़ावेद अख्तर, अनामिका, नमिता गोखले, अश्विनी कुमार पंकज, अशोक कुमार पांडेय, पुष्पेश पंत, प्रभात रंजन, राकेश तिवारी, कृष्ण कल्पित, सुजाता, प्रियदर्शन, यतीन्द्र मिश्र, अल्पना मिश्र, गिरीन्द्रनाथ झा, विनीत कुमार, हिमांशु बाजपेयी, अनुराधा बेनीवाल, सुधांशु फिरदौस, व्योमेश शुक्ल, अरूण देव, प्रत्यक्षा, त्रिलोकनाथ पांडेय, आकांक्षा पारे, आलोक श्रीवास्तव, विनय कुमार, दिलीप पांडे, अदनान कफ़ील दरवेश, गौरव सोलंकी, कैलाश वानखेड़े, अनघ शर्मा, नवीन चौधरी, सोपान जोशी, अभिषेक शुक्ला, रामकुमार सिंह, अमरेंद्र नाथ त्रिपाठी, तरूण भटनागर, उमेश पंत, निशान्त जैन, स्वानंद किरकिरे, सौरभ शुक्ला, प्रकृति करगेती, मनीषा कुलश्रेष्ठ, पुष्पेश पंत, मालचंद तिवाड़ी, बद्रीनारायण, मृत्युंजय, शिरिष मौर्य, अवधेश प्रीत, समर्थ वशिष्ठ, उमा शंकर चौधरी, अबरार मुल्तानी, अमित श्रीवास्तव, गिरिराज किराडू, चरण सिंह पथिक, शशिभूषण द्विवेदी, सदन झा

राजकमल फेसबुक पेज से लाइव हुए कुछ ख़ास हिंदी साहित्य-प्रेमी : चिन्मयी त्रिपाठी (गायक), हरप्रीत सिंह (गायक), राजेंद्र धोड़पकर (कार्टूनिस्ट एवं पत्रकार), राजेश जोशी (पत्रकार), दारैन शाहिदी (दास्तानगो), अविनाश दास (फ़िल्म निर्देशक), रविकांत (इतिहासकार, सीएसडीएस), हिमांशु पंड्या (आलोचक/क्रिटिक), आनन्द प्रधान (मीडिया विशेषज्ञ), शिराज़ हुसैन (चित्रकार, पोस्टर आर्टिस्ट), हैदर रिज़वी, अंकिता आनंद, प्रेम मोदी, सुरेंद्र राजन, रघुवीर यादव, वाणी त्रिपाठी टिक्कू, राजशेखर

कोई टिप्पणी नहीं: