पटना,18 अप्रैल। दीघा थाना अन्तर्गत नकटा दियारा ग्राम पंचायत में कल शाम को राहत सामग्री वितरण के समय में नागरिक आक्रोशित हो गये। नागरिक इतना आक्रोशित हो उठे कि गुस्से में गोली चल दी। बाद में मामला को शांत करने की इच्छा से आपसी विवाद कहकर पर्दा डालने की कोशिश की गयी। हालांकि गोला चालन से इसमें किसी की हताहत होने की पुष्टि नहीं हुई है । विवाद के कारणों के पीछे ग्रामीणों ने अपनी तरफ से एक दूसरें पर दोष मढ़ा है । यह सब कहना है त्रिभुवन, प्रदेश अध्यक्ष , आरटीआई एसोसिएशन ऑफ इंडिया , बिहार कार्यकर्ता का। वैसे सरकारी स्तर पर राहत सामग्री वितरण करते वक्त स्थानीय पुलिस की मौजूदगी आवश्यक है चाहे वह ग्रामीण मुखिया हो या नगर पार्षद । वितरण से पूर्व स्थानीय प्रशासन पुलिस की मौजूदगी जरूरी है वही दूसरी तरफ ‘सोशल डिस्टेंसिंग‘को मेंटेन करने में नकटा दियारा ग्राम पंचायत के मुखिया अक्षम साबित हुए हैं। उन्होंने खुद की जिम्मेवारी से पल्ला झारकर वार्ड सदस्य की जिम्मेवारी तय कर दी है। हालांकि दोनों की जिम्मेवारी है। इनसे इंकार नहीं किया जा सकता है। वहीं अभी भी संपूर्ण लाॅकबंदी के द्वितीय चरण में भी गांव के लोग बिना मास्क पहने ही रहते हैं और मास्कविहिन लोगें के द्वारा राहत सामग्री वितरण किया जा रहा था। जो कानून और समाज के लिये घातक साबित हो सकता है ! हालांकि कुछ दिन पहले ही सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा सोशल मीडिया के अपने पोस्ट में बांटे जा रहे वितरण मे भेदभाव किये जाने की संभावना जताया था एक दिन पहले भी गांव के कुछ लोगों ने वितरण मे भेदभाव की शिकायत को लेकर मुखिया जी से नाराजगी जताया था । इन तथ्यांे की जाँच स्वयं ऑनस्पोर्ट ग्राम पंचायत में जाकर पुलिस को करनी चाहिए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जाए । कानून को गुमराह करने वालों पर कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करना चाहिए । क्या इस वितरण मे कोई लिखित आदेश प्राप्त हुए थे और यदि कोई आदेश प्राप्त हुआ था तब वितरण करने वाले ‘सरकारी आदेश‘ का अनुपालन कर स्वयं तथा औरों को मास्क लगाकर कर राशन सामग्री वितरण क्यों नहीं किये ? देखना होगा की इन लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन क्यों नही किये ! जरूर सत्य सामने आ जाएगा। यदि ऐसा नही हुआ तो पुलिस दोनों पक्षों पर प्राथमिकी करते हुए आगे की कार्रवाई करें । कानून सबके लिये बराबर है चाहे वह कोई भी हो , क्यों ना कोई थाना का चक्कर ही लगाता हो ! पुलिस को चाहिए सत्यता की जाँच कर महामारी के समय जो कानून मे प्रावधान है उन सारे धाराओं का स्वयं पार्टी बन इस्तेमाल करे ! इस तरह की घटना निंदनीय है पिछले तीन चार वर्षों से लगातार शिकायत प्राप्त होती है संवेदक जब जनसेवा की भूमिका मे हो तो पहले वह नफा और नुकसान देखता है फिर वह आगे की सोचता है । राहत के लिये वितरण उन्हीं लोगों के बीच किया जाना चाहिए जो राहत के काबिल है अनावश्यक सरकार पर बोझ ना बने । फिलहाल तनाव व्याप्त है ।
रविवार, 19 अप्रैल 2020
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बिहार : आखिकार राहत सामग्री वितरण के समय ‘सोशल डिस्टेंसिंग‘ गयी कहाँ ?
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