अलका सरावगी का उपन्यास"कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिये" वाणी प्रकाशन ग्रुप से - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 27 मई 2020

अलका सरावगी का उपन्यास"कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिये" वाणी प्रकाशन ग्रुप से

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नई दिल्ली :  हिंदी साहित्य  प्रकाशन जगत  के दिग्गज नाम वाणी प्रकाशन ग्रुप 57 वर्षों से  विभिन्न विधाओं में बेहतरीन हिन्दी साहित्य का प्रकाशन कर रहा है। समकालीन हिंदी साहित्य के चर्चित साहित्यकार निर्मल वर्मा, उदय प्रकाश, उषाकिरण खान, अरुण कमल, यतीन्द्र मिश्रा, अनामिका, प्रभा खेतान आदि लेखकों के रचनाओं के बाद वाणी प्रकाशन साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित  जानी मानी कथाकार अलका सरावगी का नया उपन्यास ‘कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिये’ जल्द ही प्रकाशित करने जा रहा है। लेखिका अलका सरावगी हिंदी के गणमान्य उपन्यासकारों में मानी जाती हैं। उन्हें अपने पहले ही उपन्यास  'कलिकथा वाया बाई पास'  के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित  किया गया था। ‘कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिये’ उपन्यास स्वंतंत्रता से पहले बांग्लादेश से रातों रात भारत आये  हुए प्रवासी परिवार के एक अनोखे शख्स कुलभूषण जैन की कहानी है, इस उपन्यास में प्रेम प्रसंग, विवाहेतर संबधों से लेके पारिवारिक कलेश की कहानी हैं। यह साधारण पात्र की आसाधारण कहानी है जो बांग्लादेश से  कलकत्ता में आके कैसे बंगाली माहौल में अपने आप को ढालता है उसको बखूबी दर्शाता है। इतिहास, भूगोल, साहित्य, मनोविज्ञान, संस्कृति, प्रेम, द्वेष, साम्प्रदायिकता, परिवार, समाज- किस्सागोई की लचक, कथानक की मज़बूती से रेखांकित यह कहानी हमें कुछ अटपटे किरदारों से परिचित कराएगी। अपने भीतर बसे झूठे, प्रेमी, रंजिश पालने वाले, चिकल्लस बखानने वाले अलग-अलग किरदार हमें कुलभूषण की दुनिया में यूँ ही चलते फिरते मिलेंगे। तैयार रहिएगा, यदि इनमें से किसी की बातों में आ गये, तो फँसे! और बात नहीं मानी, तो कुलभूषण के जीवन-झाले में कभी घुस ही नहीं पाएंगे।

लेखिका अलका सरावगी ने अपने उपन्यास पर अपने विचार रखते हुए कहा “डेढ़ चप्पल पहनकर घूमता यह काला दुबला लम्बा शख़्स कौन है? हर बात पर इतना ख़ुश कैसे दिखता है ? कुलभूषण को कुरेदा, तो जैसे इतिहास का विस्फोट हुआ और कथा-गल्प-आख्यान-आपबीती-जगबीती के तार ही तार निकलते गए। रिफ़्यूजी तो आज की दुनिया में भी बनते चले जा रहे हैं।कुलभूषण तो पिछली आधी सदी का उजाड़ा हुआ है।देश, घर, नाम-जाति-गोत्र तक छूट गया उसका, फिर भी कहता है, माँ-बाप का दिया कूलभूषण जैन नाम दर्ज कीजिए”। वाणी प्रकाशन ग्रुप के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्वरी ने कहा “स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही हिंदी प्रकाशन के क्षेत्र में जिस  स्वातंत्र्योतर चेतना के  साथ भारतीय मनीषा के ढेरों आधुनिक विचारों ने लिखना शुरु किया,उनकी रचनात्मक यात्रा का गवाह वाणी प्रकाशन बनता रहा। आजादी के साथ खुले में सांस लेने की जो स्वायत्तता भारत के हर नागरिक में आती गयी, उसी के न्वोमेष ने हमें ढेरों स्वनामधन्य रचनाकार दिए। जिसमें निर्मल वर्मा जैसे शब्द –शिल्पियों ने भारत का आधुनिक और तर्कपूर्ण विवेकशील व सृजनात्मक मानस रचा। वाणी प्रकाशन सोभाग्यशाली है कि इस विकास यात्रा में इन साहित्य साधकों के साथ शब्दों की अर्थपूर्ण मशाल लिए हुए अपनी यात्रा के सुनहरे वर्ष पूर्ण कर रहा है” । अलका सरावगी के नए उपन्यास ‘कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिये’ की  जानकारी देते हुए वाणी प्रकाशन की निदेशक अदिति माहेश्वरी ने कहा "कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिये" अलका सरावगी  का नया उपन्यास है, और उसकी पहली पाठक और संपादक यानी मैं, कुछ दिनों और रातों से कुलभूषण की दुनिया में बंद हूँ। इस किरदार के आसपास के संसार में कोई दरवाज़ा ताला-निगार नहीं है, लेकिन फिर भी कई तिजोरियों के रहस्य दफ़न हैं इसके पास। कुलभूषण की बातों का सच उतना ही खामोश और पक्का है, जितनी हाथों में लकीरें या आसमान में बादल। एक लाइन ऑफ कंट्रोल, दो देश, तीन भाषाएं, चार से अधिक दशक...कुलभूषण ने सब देखा, जिया, समझा है”। "मास्टर स्टोरीटेलर" अलका सरावगी का नया उपन्यास मुझे रह-रह कर महसूस करा रहा है कि गेब्रियल गार्सिया मार्केज़ के संपादक क्रिस्टोबल पेरा का पांडुलिपि के पहले ड्राफ़्ट को पढ़ना कितने गर्व, संयम, गंभीरता और उल्लास का विषय रहता होगा। 

लेखिका के बारे में
लेखिका अलका सरावगी का जन्म 17 नवम्बर,1960, कोलकाता में हुआ,वे साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी हैं। उन्होंने  हिन्दी साहित्य में एम॰ए॰ और 'रघुवीर सहाय के कृतित्व' विषय पर पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की है। "कलिकथा वाया बाइपास" उनका चर्चित उपन्यास है, जो अनेक भाषाओं में अनुदित हो चुके हैं। लेखिका ने अपने पहले उपन्यास का अंग्रेजी अनुवाद किया था. अपने प्रथम उपन्यास ‘कलिकथा वाया बायपास’ से एक सशक्त उपन्यासकार के रूप में स्थापित हो चुकी अलका का पहला कहानी संग्रह वर्ष 1996 में 'कहानियों की तलाश में' आया। इसके दो साल बाद ही उनका पहला उपन्यास 'काली कथा, वाया बायपास' शीर्षक से प्रकाशित हुआ। 'काली कथा, वाया बायपास' में नायक किशोर बाबू और उनके परिवार की चार पीढिय़ों की सुदूर रेगिस्तानी प्रदेश राजस्थान से पूर्वी प्रदेश बंगाल की ओर पलायन, उससे जुड़ी उम्मीद एवं पीड़ा की कहानी बयाँ की गई है। वर्ष 2000 में उनके दूसरे कहानी संग्रह 'दूसरी कहानी' के बाद उनके कई उपन्यास प्रकाशित हुए। पहले 'शेष कादंबरी' फिर 'कोई बात नहीं' और उसके बाद 'एक ब्रेक के बाद'। उन्होने ‘एक ब्रेक के बाद’ उपन्यास के विषय का ताना-बाना समसामायिक कोर्पोरेट जगत को कथावस्तु का आधार लेते हुए बुना है। अपने पहले उपन्यास के लिए ही उनको वर्ष 2001 में 'साहित्य कला अकादमी पुरस्कार' और 'श्रीकांत वर्मा पुरस्कार' से नवाजा गया था। यही नहीं, उनके उपन्यासों को देश की सभी आधिकारिक भाषाओं में अनूदित करने की अनुशंसा भी की गई है।

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