
वाराणसी, कोरबा एवं आसाम के अलग अलग गॉंवों से कॉल्स आने शुरू हो गए थे, हम जानते हैं की लोगों का फोन करके खाना उपलब्ध करवाने की गुहार करना मुश्किल भरा रहा होगा। हमने हर कॉल की जानकारी लिखी और लगभग हर किसी के पास पहुँचने की कोशिश की। दृष्टि ने एक छोटा सा फंड बनाया है जिसमें पुरे भारत से दृष्टि के कर्मचारियों ने अपनी शक्ति के अनुसार योगदान दिया, हमारा मानना है कि इससे भले ही कोई बड़े पैमाने पर समस्याओं से निपटने में मदद न मिले लेकिन कुछ ज़रूरतमंदों की मदद ज़रूर हो सकती है. इससे लोगों में कुछ उम्मीद बंधेगी. क्योंकि लॉकडाउन के दौरान थोड़ी सी भी मदद मायने रखती है. कोरोना वायरस ऐसे वक्त में आया है जबकि इतिहास में पहली बार इतने ज्यादा लोगों को अकेले रहना पड़ रहा है. इस महामारी ने लोगों को सामाजिक दूरी बनाने के लिए मजबूर कर दिया है. सोशल मीडिया पर आप लोगों के ज़रूरतमंदों की मदद करने वाली कई कहानियां सुनते होंगे. आपने सुना होगा कि कोरोना के चलते किस तरह बड़े शहरों में रह रहे प्रवासी मज़दूर सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने घरों के लिए पैदल ही चल पड़े. इसे अगर अलग नजरिये से देखें तो शायद ये इन लोगों के लिए एक ऑपर्चुनिटी सा होगा की अब घर पर रह कर ही काम धंधा करेंगे. छोटे-छोटे उद्यम करेंगे और रोजगार के नए अवसर तलाशेंगे... बहुत सारे प्रवासी मजदूरों ने बातचीत के क्रम में बताया की दिल्ली ,मुंबई जा कर क्या कमा लिए हमलोग, 10 दिन का राशन नहीं रख पाए, इससे अच्छा तो अपना मिटटी-पानी... यही कमाएंगे और परिवार के साथ रहेंगे। दृष्टि फाउंडेशन ग्रामीण स्वाबलंबन के लिए प्रतिबद्ध है एवं ये विश्वास दिलाती है की विपदा के इस घडी में पूर्ण सहयोग के साथ हर जरूरतमंद साथ खड़ी रहेगी. हम उम्मीद करते हैं की जल्द ही भारत कोरोना वायरस से लड़ाई जीतेगा और जीवन पुनः सामन्य स्तिथि में आएगी. दृष्टि फाउंडेशन आप सभी से अनुरोध करती है की सामाजिक दूरी बनाये रखें, घर पर रहें, तब तक बाहर ना निकलें जब तक काफी आवश्यक न हो एवं सुरक्षित रहें.
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