आलेख : सेवा दल बने कांग्रेस का शक्ति केंद्र - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शनिवार, 1 अगस्त 2020

आलेख : सेवा दल बने कांग्रेस का शक्ति केंद्र

 भारतीय राजनीति में अधिकतर समय विपक्ष मजबूत नहीं रहा है लेकिन मौजूदा समय कि तरह कभी इतना नाकारा और डरा हुआ भी नहीं रहा है. आज भारतीय राजनीति का विपक्ष अभूतपूर्व संकट के दौर से जूझ रहा है जिसके चलते सत्तापक्ष लगातार बेकाबू होता जा रहा है. विपक्ष के रूप में कांग्रेस अपने आप को पूरी तरह से नाकारा साबित कर ही रही है बाकी की विपक्षी पार्टियों ने भी एक तरह से सरेंडर किया हुआ है. यहां तक कि इनमें से अधिकतर रोजमर्रा के राजनीतिक गतिविधियों में शामिल नहीं दिखाई पड़ रही हैं. चूंकि भाजपा के बाद कांग्रेस ही सबसे बड़ी और प्रभावशाली पार्टी है इसलिये उसका संकट भारतीय राजनीति के विपक्ष का संकट बन गया है. 

संगठनात्मक संकट से जूझती कांग्रेस 
आज कांग्रेस पार्टी दोहरे संकट से गुजर रही है जो कि अंदरूनी और बाहरी दोनों हैं लेकिन अंदरूनी संकट ज्यादा गहरा है जिसके चलते पार्टी एक राजनीतिक संगठन के तौर पर काम नहीं कर पा रही है. हर सियासी दल का एक विचारधारा, विजन, लीडर और कैडर होता है, फिलहाल कांग्रेस के पास यह चारों नहीं है.लगातार हार ने पार्टी के नेताओं की उम्मीदें तोड़ दी हैं, खासकर युवा नेताओं की. पार्टी में लम्बे समय से चल रही पीढ़ीगत बदलाव की प्रक्रिया उलटी दिशा में चल पड़ी है, एक ऐसे समय में जब  कांग्रेस में पीढ़ीगत बदलाव की प्रक्रिया पूरी हो जानी थी पार्टी में एक बार फिर पुरानी पीढ़ी का वर्चस्व कायम हो गया है.  सचिन पायलट के बगावती तेवर सामने आने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने ट्वीट किया था कि “हम कब जगेंगे, जब घोड़े अस्तबल से निकल जाएंगे?” कांग्रेस का संकट ही यही है कि संकट से उबरने के लिये पार्टी कोई प्रयास करती हुई दिखाई ही नहीं पड़ रही है, जैसे कि   सबकुछ भाग्य और नियति के भरोसे छोड़ दिया गया हो. जबकि पार्टी के सामने जो संकट है उसे अभूतपूर्व ही कहा जाएगा. 

करीब एक साल हो गये है लेकिन पार्टी में नेतृत्व को लेकर दुविधा की स्थिति बनी ही हुई है. अपना इस्तीफ़ा देते समय राहुल गाँधी ने 2019 की हार के बाद कांग्रेस नेताओं के जवाबदेही लेने, पार्टी के पुनर्गठन के लिये कठोर फ़ैसले लेने और गैर गांधी अध्यक्ष चुनने की बात कही थी. लेकिन इनमें से भी कुछ नहीं हुआ और आखिरकार उनका इस्तीफा भी बेकार चला गया. फिलहाल सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष हैं, राहुल गाँधी के एक बार फिर पार्टी अध्यक्ष बनाये जाने की अटकलें लगाई जा रही हैं और इन सबके बीच वो बिना कोई जिम्मेदारी लिये हुये पार्टी के सबसे बड़े और प्रभावशाली नेता बने हुये हैं. विचारधारा को लेकर भी भ्रम की स्थिति है. पार्टी नर्म हिन्दुतत्व व धर्मनिरपेक्षता/उदारवाद के बीच झूल रही है. आज कांग्रेस का मुकाबला एक ऐसे पार्टी से है जो विचारधारा के आधार पर अपनी राजनीति करती है. भाजपा देश की सत्ता पर काबिज है और अपने विचारधारा के आधार पर नया भारत गढ़ने में व्यस्त हैं. आजादी की विरासत और पिछले सत्तर वर्षों के दौरान प्रमुख सत्ताधारी दल होने के नाते कांग्रेस ने अपने हिसाब से भारत को गढ़ा था. अब उसके पास भाजपा के हिन्दुतात्वादी राष्ट्रवाद के मुकाबले कोई कार्यक्रम या खाका नजर नहीं आ रहा है. 

इन सबके चलते पार्टी में विद्रोह का आलम यह है कि राज्यों में खुद उसके नेता ही भाजपा के शह में आकर अपनी ही सरकारों को गिरा रहे हैं. ऐसे नहीं है कि यह स्थिति राहुल गाँधी के पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद ही बनी है. पार्टी ने 2019 का लोकसभा चुनाव सांगठनिक रूप से नहीं लड़ा था, इसे अकेले राहुल गाँधी के भरोसे छोड़ दिया गया था,तभी हम देखते हैं कि मध्यप्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ़ में विधानसभा चुनाव जीतने के कुछ महीनों बाद ही लोकसभा चुनाव के दौरान इन राज्यों में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा. राजस्थान में तो सूफड़ा साफ हो गया था. पूरा जोर लगाने के बावजूद भी मुख्यमंत्री गहलोत अपने बेटे को भी जिताने में नाकाम रहे जबकि मध्यप्रदेश में कमलनाथ केवल अपने बेटे को जिताने में ही कामयाब रहे. इसके बाद ही राहुल गाँधी ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देते हुए कमलनाथ और गहलोत को निशाना बनाया था. राहुल के इस्तीफा देने के बाद से स्थिति और बिगड़ी है. पार्टी संगठन, नेता और कार्यकर्ता एक तरह से निष्क्रिय पड़े हुए हैं. इस्तीफा देने के बाद राहुल गांधी एकला चलो की राह पर चलते दिखाई पड़ रहे हैं. वे अकेले ही मोदी सरकार को घेरने की कोशिश करते रहते हैं. उनके इस कवायद में पार्टी संगठन नदारद है. बहरहाल चाहे-अनचाहे इस पूरे संकट के केंद्र में राहुल गांधी ही बने हुए हैं. लेकिन वे अभी तक अपने पार्टी में ही वर्चस्व स्थापित नहीं कर पाए हैं साथ ही वे अपने विरोधियों द्वारा गढ़ी गयी छवि से भी बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. उनमें नेतृत्व में निर्णय और जोखिम लेने का अभाव दिखाई पड़ता है.

लंबी सोच, सही नजरिये और ठोस रणनीति की जरूरत
कांग्रेस पार्टी का संकट गहरा है और लड़ाई उसके अस्तित्व से जुडी है. आज कांग्रेस करो या मरो की स्थिति में पहुंच चुकी है. दरअसल कांग्रेस का मुकाबला अकेले भाजपा से नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके विशाल परिवार से है जिसके पास संगठन और विचार दोनों हैं. इससे उबरने कांग्रेस को  खुद के अंदर नेतृत्व से लेकर संगठन, विचारधारा, और कार्यक्रम तक को लेकर बुनियादी बदलाव करने होंगे. खुद को दोबारा जीवंत बनाने, उसे अपने अंदर प्रतिस्पर्धा और लोकतंत्र की बहाली करनी होगी साथ ही जनता के सामने ऐसा विजन पेश करना होगा जो भारत को उसके मौजूदा संकट से बाहर निकालने का विश्वास पैदा कर सके और संघ परिवार के बहुसंख्यकवादी भारत के सामने खड़ा होने में सक्षम हो. कांग्रेस के पास दूसरा विकल्प इतिहास बन जाने का है. 

कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष को यह समझाना होगा कि मौजूदा दौर में भारत विचारधारा के संघर्ष में उलझा हुआ है और केवल चुनावी संगठन के बूते विचारधारा की राजनीति को नहीं साधा जा सकता है. अगर कांग्रेस पार्टी को इसका मुकाबला करना है तो इसके लिये उसे “संघ परिवार” की तरह अपना “कांग्रेस परिवार” बनाना होगा. और इस काम में गाँधी परिवार खासकर राहुल गाँधी को केन्द्रीय भूमिका लेनी होगी. भाजपा की असली ताकत संघ से आती है कांग्रेस को भी इसका विकल्प ढूँढना होगा और उसे अपनी शक्ति का केंद्र बदलना होगा. इस काम के लिये सेवा दल कारगर साबित हो सकता है. सेवा दल को  कांग्रेस पार्टी का शक्ति केंद्र बनाया जा सकता है जिसके संघ परिवार की तरह सैकड़ों अनुवांशिक संगठन हों जिसमें एक कांग्रेस भी शामिल हो. ऐसा तभी हो सकता है जब गाँधी परिवार सेवा दल का पावर सेंटर बने. इसके लिये लंबी सोच, सही नजरिये और ठोस रणनीति की जरूरत होगी. चूंकि राहुल गाँधी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते समय कह चुके हैं कि गाँधी परिवार का कोई सदस्य पार्टी अध्यक्ष नहीं बनेगा ऐसे में वे इस काम को आगे बढ़ाने में मुफीद साबित हो सकते हैं, विचारधारा की राजनीति में उनकी रूचि भी दिखाई पड़ती है ऐसे में वे सेवा दल को पुनर्जीवित करके इस काम को आगे बढ़ा सकते हैं. सेवा दल के माध्यम से वे संघ के एकांगी विचारधारा के के ठीक विपरीत एक ऐसी विचारधरा को पेश कर सकते हैं जो भारत की आत्मा को साथ में लेकर चलनी वाली हो और  जिसमें इसकी सभी भारतीय सामान रूप से समाहित हों. वे एक ऐसे भारत का सपना पेश कर सकते हैं जो तरक्कीपसंद, संवृद्धि, खुशहाल और बन्धुतत्व की भावना जुड़ा हो. रही बात चुनावी राजनीति और कांग्रेस की तो राहुल गाँधी पहले भी यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई में आंतरिक चुनाव करा चुके हैं इसे कांग्रेस पार्टी में भी लागू किया जा सकता है.  



liveaaryaavart dot com

जावेद अनीस 
Contact-9424401459
javed4media@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं: