- 105 सीटों पर 15 हजार से ज्यादा हैं पासवान वोटर, भाजपा उम्मीदवार अब चिराग से मांग रहे हैं लौ
- 55 सीटों पर 20000 से ज्यादा पासवान वोटर, 15 सीटों पर 30000 से ज्यादा पासवान वोटर
बिहार की राजनीति में जिन आधा दर्जन जातियों में मतदान का प्रतिशत सबसे ज्यादा होता है, उसमें पासवान जाति भी शामिल है। लोजपा 136 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। यानी 107 सीटों को भाजपा के लिए निरापद छोड़ दिया है। भाजपा से कुछेक सीटों पर ‘दोस्ताना दुश्मनी’ भी है। जिन 136 सीटों पर लोजपा ने उम्मीदवार दिये हैं, उन सीटों पर दुसाध जाति का अधिकतर वोट लोजपा उम्मीदवार के खाते में ही जाएगा, तय है। लोजपा ने उम्मीदवारों के चयन में धन, जन और बाहुबल का भी पूरा ख्याल रखा है। अनेक सीटों पर उम्मीदवार अपनी जाति के साथ ही अन्य जातियों का वोट प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। इसका सीधा असर गैरभाजपा एनडीए के दलों पर पड़ेगा। पहले लोजपा और भाजपा के संबंधों को आपसी ‘अंडरस्टैंडिंग’ माना जा रहा था। लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने लोजपा से अपना पल्ला झाड़ लिया। अब इसका खामियाजा भाजपा उम्मीदवारों को भुगतना पड़ रहा है। जिन सीटों पर लोजपा ने अपने उम्मीदवार नहीं दिये हैं, उन सीटों पर दुसाध मतदाता भाजपा को वोट करेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है। चिराग पासवान ने नये माहौल में भाजपा उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान करने की अपील भी अपने कार्यकर्ताओं से नहीं की है। विभिन्न इलाकों से मिल रही खबरों के अनुसार, भाजपा के उम्मीदवार अब चिराग पासवान और प्रिंस पासवान से पासवानों वोटरों के समर्थन के लिए संपर्क भी कर रहे हैं। बिहार के चुनाव में पहली बार दुसाध जाति एक अलग राजनीतिक ताकत के रूप में मैदान में दिख रही है। इसके साथ ही लोजपा और चिराग पासवान का राजनीतिक भविष्य भी दाव पर लग गया है। दुसाधों की अलग पहचान की लड़ाई चुनाव परिणाम को कितना प्रभावित करेगा, यह तो 10 नवंबर को पता चलेगा। लेकिन इतना तय है कि चिराग पासवान की रणनीति ने एनडीए की जीत की एकतरफा उम्मीदों पानी फेर दिया है।
--- वीरेंद्र, संपादक, वीरेंद्र यादव न्यूज ---
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