अब ऐसे किसी भी मामले की जांच इंस्पेक्टर रैंक या उससे ऊपर के अधिकारी कर सकते हैं....

एनआइए की बढ़ेगी ताकत
यह विधेयक राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) को असीमित अधिकार देता है। पुराने विधेयक के मुताबिक जांच अधिकारी को आतंकवाद से जुड़े किसी भी मामले में संपत्ति सीज करने के लिए पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) से अनुमति लेनी होती थी, लेकिन अब यह कानून इस बात की अनुमति देता है कि अगर आतंकवाद से जुड़े किसी मामले की जांच एनआइए का कोई अफसर करता है तो उसे इसके लिए सिर्फ एनआइए के महानिदेशक से अनुमति लेनी होगी। प्रस्तावित संशोधन के बाद अब एनआइए के महानिदेशक को ऐसी संपत्तियों को कब्जे में लेने और उनकी कुर्की करने का अधिकार मिल जाएगा, जिनका आतंकी गतिविधियों में इस्तेमाल किया गया।
इंस्पेक्टर भी कर सकेगा जांच
पुराने कानून के अनुसार, ऐसे किसी भी मामले की जांच डिप्टी सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (डीएसपी) या असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस (एसीपी) रैंक के अधिकारी ही कर सकते थे। लेकिन अब नए कानून के प्रावधान के तहत एनआइए के अफसरों को ज्यादा अधिकार दिए गए हैं। अब ऐसे किसी भी मामले की जांच इंस्पेक्टर रैंक या उससे ऊपर के अधिकारी कर सकते हैं।
व्यक्ति घोषित होगा आतंकवादी
कांग्रेस सरकार द्वारा 1967 में बनाए गए कानून के तहत, केंद्र जांच के दौरान संगठन और संस्थाओं को ही आतंकी घोषित किया जा सकता था। बाद में वे संगठन नाम बदलकर आतंक फैलाते रहते थे। यूएपीए संशोधन अधिनियम 2019 के तहत व्यक्ति को भी आतंकवादी घोषित किया जा सकेगा। यदि वह आतंकवाद के कृत्यों में भाग लेता है, किसी व्यक्ति को आतंकवाद के लिए तैयार करता है, आतंकवाद को बढ़ावा देता है, या खुद आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होता है।
नहीं चलेगी मनमानी
संशोधित कानून के तहत आतंकवादी घोषित हुए किसी व्यक्ति का नाम सूची से हटाने का भी प्रावधान है। सरकार अपनी मनमानी नहीं कर सकती। इसके लिए संबंधित व्यक्ति को आवेदन करना होगा। इस आवेदन और उस पर निर्णय लेने की प्रक्रिया केंद्र सरकार तय करेगी। अगर संबंधित व्यक्ति का प्रार्थना पत्र केंद्र सरकार द्वारा खारिज कर दिया जाता है तो कानून में प्रावधान है कि वह खारिज होने के एक महीने के भीतर इस निर्णय की समीक्षा की मांग कर सकता है। एक चेयरपर्सन (उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त या मौजूद न्यायाधीश) और तीन अन्य सदस्यों वाली समीक्षा समिति का गठन होगा। यदि समीक्षा समिति को लगता है कि व्यक्ति को गलत तरीके से आतंकी घोषित किया गया है तो सरकार को उसे हटाने का आदेश दे सकती है। इसके अलावा आतंकवादी घोषित व्यक्ति सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली अदालतों में भी जा सकता है।
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