नई दिल्ली : समावेशी नजरिये के बिना कोई भी सियासत खुद को व्यापक तौर पर स्थापित नहीं कर सकती. अस्मिता और स्थानीयता को आधार बनाकर महाराष्ट्र में उभरी शिवसेना के उदाहरण से यह बात बखूबी समझ में आती है. बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत को लेकर आगे बढ़ने वाले उनके बेटे उद्धव और भतीजे राज के सियासी सफर से भी यही जाहिर होता है. महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य का यह संकेत राष्ट्रीय राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश हो सकता है. ये बातें सामने आईं राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा आयोजित फेसबुक लाइव में. यह कार्यक्रम लेखक धवल कुलकर्णी की किताब ' ठाकरे भाऊ : उद्धव, राज और उनकी सेनाओं की छाया' पर केंद्रित था. जिसका हिंदी अनुवाद राजकमल प्रकाशन से अभी अभी प्रकाशित हुआ है. इस कार्यक्रम में धवल और उनकी इस किताब के हिंदी अनुवादक प्रभात रंजन से मशहूर पत्रकार केतन वैद्य ने बातचीत की. केतन के सवाल पर धवल ने बताया कि उन्होंने यह किताब लिखने के बारे में 2011 में तब सोचा, जब पाकिस्तान की एक यात्रा के दौरान वहाँ लोगों ने उनसे राज, बालासाहेब और उद्धव के बारे में सबसे ज्यादा सवाल पूछे. उन्होंने कहा, इस किताब के जरिये मैंने यह दिखाने की कोशिश की है कि किस तरह शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना जैसी स्थानीयता वादी पार्टियां और आंदोलन किस तरह लोगों के एक बड़े हिस्से में पैठ बनाती हैं. धवल के मुताबिक, महाराष्ट्र में समाज सुधार के अपने उल्लेखनीय कार्यों के कारण प्रबोधनकार के रूप में विख्यात केशव सीता राम ठाकरे के बेटे बाल ठाकरे ने शिवसेना के जरिये जो आक्रामक राजनीति स्थापित की, वह वाम विरोध, मराठी मानुष और हिंदुत्व के इर्द गिर्द केंद्रित रही. लेकिन बाल ठाकरे के बाद शिवसेना की राजनीति ने उद्धव के नेतृत्व में अलग रुख अख्तियार किया, जबकि राज ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना कर पुरानी आक्रामकता के जरिये चाचा की राजनीतिक विरासत पर काबिज होने का प्रयास किया. आज उद्धव और राज की राजनीतिक लाइन के परिणाम जाहिर हैं. उद्धव ने शिवसेना की राजनीति को समावेशी बनाने की पहल की और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने, जबकि राज की राजनीति अपने दायरे में ही सीमित रही. प्रभात रंजन ने कहा कि इस किताब का अनुवाद करते हुए उन्होंने जाना कि मुंबई से बिहारियों पुरबियों को निकालने और हिंदुत्व की बात करने वाली शिवसेना ने उद्धव के नेतृत्व में समावेशी राजनीति की राह पर बढ़ने की कोशिश की है. उद्धव की शिवसेना पुरानी शिवसेना नहीं है. कार्यक्रम का संचालन करते हुए केतन ने कहा, धवल की यह किताब ऊपरी तौर पर शिवसेना की कहानी है लेकिन इसके निहितार्थ व्यापक हैं.
रविवार, 24 जनवरी 2021

समावेशी राजनीति ने शिवसेना को दी नई जमीन
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