- -- शीला संधू ने राजकमल प्रकाशन के जरिये हिन्दी के साहित्यिक-सांस्कृतिक परिदृश्य को दी नई ऊँचाई.
- --हिंदी में रचनावालियों के प्रकाशन की नई शुरुआत और परंपरा स्थापित करने का भी श्रेय उन्हीं को है ।
नई दिल्ली : हिन्दी में स्तरीय साहित्यिक पुस्तकों के प्रकाशन के जरिये भारत के शैक्षिक- सांस्कृतिक क्षेत्र को समृद्ध करने वाली श्रीमती शीला संधू के निधन पर राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक ने गहरा शोक जताया है। उन्होंने कहा है कि पुस्तक प्रकाशन और हिन्दी साहित्य के प्रति शीला जी का योगदान अविस्मरणीय है, जिसके लिए समाज उनका हमेशा कृतज्ञ रहेगा । अशोक महेश्वरी ने कहा, शीला जी ने 1964 में राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक का दायित्व ग्रहण किया था । वे 1994 तक इस पद पर रहीं. तीन दशक के अपने कार्यकाल में उन्होंने राजकमल प्रकाशन की सम्मानित और मजबूत नींव पर विशाल भवन तैयार किया. उसे स्थिरता और मजबूती प्रदान की. उन्होंने बहुत से नामचीन और नए लेखकों को राजकमल से जोड़ा. आधुनिक रूप में राजकमल पेपरबैक की शुरुआत उन्होंने ही की । उन्होंने कहा, हिंदी में रचनावालियों के प्रकाशन की नई शुरुआत और परंपरा भी शीला जी ने ही स्थापित की. मंटो की रचनाओं का पांच भागों में संकलन दस्तावेज भी उनकी सूझ का परिणाम था. प्रतिष्ठित पत्रिका 'आलोचना' का प्रकाशन उन्होंने जारी रखा, यह हिंदी की बड़ी उपलब्धि है । अशोक ने कहा, मैं शीला जी और निर्मला जैन जी के स्नेह के कारण ही राजकमल आ सका, मैं आजीवन स्वयं को उनका ऋणी मानता रहूंगा । गौरतलब है कि राजकमल प्रकाशन की पूर्व प्रबंध निदेशक श्रीमती शीला संधू का 1 मई 2021 की सुबह निधन हो गया. उन्हें कोरोना हो गया था । 24 मार्च 1924 को जन्मी श्रीमती शीला संधू ने राजकमल प्रकाशन के जरिये हिन्दी भाषा भाषी समाज के साहित्यिक-सांस्कृतिक परिदृश्य में अभूतपूर्व रचनात्मक योगदान दिया ।
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