रोकथाम को लेकर युद्ध स्तर पर कोशिशें ज़ारी
पटना : स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि बरसात के मौसम में मच्छरों से फैलने वाले रोगों की आशंका को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग द्वारा इसकी रोकथाम को लेकर आवश्यक तैयारी की गई है। मलेरिया प्रभावित जिलों की पहचान लगातार 3 साल के केस लोड के मुताबिक की जाती है। इस लिहाज से राज्य के 7 जिलों में मलेरिया के 80 फीसदी मामले हैं, जिसमें गया, कैमूर, मुंगेर, औरंगाबाद, नवादा, रोहतास एवं जमुई शामिल हैं। इसको लेकर प्रभावित जिलों में युद्धस्तर पर मलेरिया की रोकथाम एवं प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। मंगल पांडेय ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा विगत वर्ष जारी वर्ल्ड मलेरिया रिपोर्ट के मुताबिक मलेरिया से सबसे अधिक प्रभावित देशों की सूची में भारत ही एक देश है जहां वर्ष 2018 की तुलना में 2019 में मलेरिया केसेस में 17.6 फीसदी की कमी आई है। वर्ष 2018 की तुलना में 2019 में एनुअल पारासाईटीक इन्सीडेंस में भी 27.6 फीसदी की कमी देखी गई है, वहीं बिहार में भी मलेरिया मामलों में कमी दर्ज हुई है। जून महीने को एंटी मलेरिया माह के रूप में भी मनाया गया है। इस दौरान प्रभावित एवं संभावित क्षेत्रों में डीडीटी का छिडकाव कराया गया है। मलेरिया पर प्रभावी नियंत्रण के लिए जून से अक्टूबर माह तक ऐसे क्षेत्रों की पहचान कर लगातार डीडीटी का छिडकाव भी कराया जा रहा है, ताकि मच्छरों के प्रकोप में कमी आ सके। पांडेय ने कहा कि मलेरिया की बेहतर रोकथाम एवं इलाज के लिए जरूरी है कि लक्षण वाले मरीजों की सही समय पर मलेरिया की जांच हो सके। इसके लिए आशा कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित भी किया जा रहा है। प्रत्येक आशा कार्यकर्ता को जांच के लिए रोगी के ब्लड का नमूना एकत्रित कराने में सहयोग करने पर प्रति मरीज 15 रुपए एवं चिह्नित मरीजों को 3 दिन तक दवा सेवन सुनिश्चित कराने के लिए 75 रुपये की प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है। इस तरह मलेरिया जांच में सहयोग एवं दवा सेवन सुनिश्चित कराने के लिए आशा को 90 रुपये की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जा रही है। इससे मलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में मलेरिया की ससमय पहचान एवं शत-प्रतिशत लोगों द्वारा दवा सेवन सुनिश्चित कराने में आसानी हुई है।
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