- 2014 में मोदी सरकार के सता में आने के बाद मनरेगा में लगातार घटता गया रोजगार
- 2018-19 का यह हाल है, तो लॉकडाउन समयावधि की स्थिति का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है.
पटना 30 जुलाई, भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कैग द्वारा 2018-19 की रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में अव्वले दर्जे की नाकामी, लगातार संस्थाबद्ध होता भ्रष्टाचार, गरीबों के लिए लाई गई मनरेगा योजना की लगातार उपेक्षा व उसमें भ्रष्टाचार आदि जो सवाल हमारी पार्टी उठाते रही है, कैग की रिपोर्ट उसकी पुष्टि करती है. अब कैग भी कह रहा है कि मनरेगा योजना के क्रियान्वयन में भारी सुधार की आवश्यकता है. रिपोर्ट के अनुसार 60.88 लाख भूमिहीन मजदूरों के सर्वेक्षण में मात्र 3.34 प्रतिशत के पास जॉब कार्ड है और उनमें भी 1 फीसदी से भी कम लोगों को जॉब कार्ड मिले हैं. जबकि बिहार में दिहाड़ी मजदूरों की संख्या सबसे ज्यादा 88.61 प्रतिशत है. मनरेगा के तहत अभी तक महज 8 से 10 प्रतिशत ही मजदूर निबंधित हो पाए हैं. औसतन 34-45 दिनों का ही रोजगार मिल पाता है. 42 लाख काम में 36 लाख काम अधूरे पड़े हुए हैं. मनरेगा में रोजगार देने की दर 2014 में 14 प्रतिशत से घटकर 2019 में महज 2 प्रतिशत रह गया है. विदित हो कि 2014 में मोदी सरकार पहली बार सत्ता में आई थी. रिपोर्ट बतलाती है कि मोदी सरकार ने मनरेगा योजना व भूमिहीन मजदूरों की घोर उपेक्षा की है. रिपोर्ट यह भी बतलाती है कि श्रमिकों के लिए कार्यस्थल पर सुविधाओं का घोर अभाव ही रहता है. 100 दिन की मजदूरी मांगने वाले परिवारों में से महज 1 फीसदी को ही रोजगार मिल सका है. यह आंकड़ें 2018-19 की हैं. यदि हम लॉकडाउन व कोविड के भयावह दौर की चर्चा करें, तो जाहिर है स्थिति और भी खराब हुई है. विगत साल भर से तो ये सारी की सारी योजनायें ध्वस्त पड़ी हैं. सरकार को सोचना चाहिए कि मजदूरों-गरीबों की यह विशाल आबादी आखिर किस प्रकार अपना जीवन-यापन कर रही होगी. सरकार न तो उन्हें रोजगार दे पा रही है और न ही लॉकडाउन की मार से उबरने के लिए किसी भी प्रकार का कोई मुआवजा. मनरेगा की योजना तो पूरी तरह से भ्रष्टाचार के जकड़न में है. एक रिपोर्ट के मुताबिक भोजुपर जिले में लॉकडाउन के दौरान 39 दिनों में मनरेगा योजना में 39 करोड़ रुपया निकाल लिया गया, लेकिन रोजगार नदारद. जमीन पर कहीं भी किसी भी प्रकार का कोई रोजगार नहीं दिखा. हम सरकार से इसकी जांच कराने की मांग करते हैं. पौधारोपण में भी 164.98 करोड़ की बर्बादी का मामला कैग ने उजागर किया है. पुल निर्माण में भी कई प्रकार की गड़बड़ियों को पकड़ा गया है. फ्लाईओवर निर्माण में नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. तकनीकी स्वीकृति से पहले ही ठेकेदार को 66 करोड़ रुपये देने जैसे मसले सामने आए हैं. शायद ही ऐसा कोई विभाग हो जिसमें अनियमितता नहीं हुई है. संस्थाबद्ध भ्रष्टाचार भाजपा-जदयू सरकार की विशिष्टता बन गई है.
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