अभिव्यक्ति से भावना,आस्था आहत नहीं होनी चाहिए : नायडू - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शनिवार, 18 दिसंबर 2021

अभिव्यक्ति से भावना,आस्था आहत नहीं होनी चाहिए : नायडू

expression-should-not-hurt-sentiments-faith-naidu
नयी दिल्ली 18 दिसंबर, उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जिम्मेदारी से उपयोग करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा है कि इससे दूसरों की आस्था या भावनायें आहत नहीं होनी चाहिए। उपराष्ट्रपति ने शनिवार को यहां साहित्य अकादमी सभागार में भारतीय ज्ञानपीठ के 33 वें मूर्तिदेवी पुरस्कार समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि सार्वजनिक भाषणों में शब्दों की शालीनता का पालन किया जाना चाहिए। लेखकों और विचारकों से समाज में बौद्धिक संवाद बनाने की अपेक्षा की जाती है। इस संवाद से विवाद पैदा नहीं होने चाहिए। प्रख्यात हिंदी लेखक विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को उनके उत्कृष्ट कार्य, ‘अस्ति और भवति’ के लिए इस वर्ष का मूर्तिदेवी पुरस्कार प्रदान किया गया है। इस अवसर पर श्री नायडू ने लेखकों और विचारकों को राष्ट्र के बौद्धिक केंद्र बताया और कहा कि वे इसे अपने रचनात्मक विचारों और साहित्य से समृद्ध करते हैं। उन्होंने ‘शब्द’ और ‘भाषा’ को मानव इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण आविष्कार बताते हुए कहा कि साहित्य समाज की विचार-परंपरा का जीवंत वाहक है। उन्होंने कहा,“एक समाज जितना सुसंस्कृत होगा, उसकी भाषा उतनी ही परिष्कृत होगी। समाज जितना जागृत होगा, उसका साहित्य उतना ही व्यापक होगा।”

कोई टिप्पणी नहीं: