बिहार : बलात्कारी को एक दिन के ट्रायल में सजा हुई - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 11 दिसंबर 2021

बिहार : बलात्कारी को एक दिन के ट्रायल में सजा हुई

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पटना. बुरे फंसे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सह राज्य सभा सांसद सुशील कुमार मोदी.राज्य सभा सांसद ने लालू-राबड़ी सरकार पर सीधे हमला कर कहा कि अब बिहार पहले वाला नहीं, जब यहां अपराध चरम पर था, अपहरण उद्योग चलता था और इन्हीं मुद्दों पर फिल्में बनती थीं.बिहार में पोक्सो से जुड़े मामलों में सजा सुनाये जाने की दर ( कन्विक्शन रेट) राष्ट्रीय औसत से बहुत ज्यादा है.सांसद महोदय ने पोक्सो के बदले में पोस्को लिख दिये थे. इस पर मुनीश वैशो ने कहा कि चिचा (चचा) कहना क्या चाहते हो ? कि यो भी मोदी जी के नेतृत्व में हो रहा है या बाकी देश ज्यूडिशियरी ठीक से काम नहीं करती या फिर बिहार में पोक्सो के केश बाकी देश की तुलना में ज्यादा है ? और हां पोस्को नहीं पोक्सो होता है. सांसद ने बिहार में क्लास-2 की बच्ची से बलात्कार के मामले में पोक्सो कोर्ट ने एक ही दिन की सुनवाई में दोषी को उम्र कैद और दो लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुना कर नया रिकार्ड कायम किया. बिहार में पोक्सो से जुड़े मामलों में सजा सुनाये जाने की दर ( कन्विक्शन रेट) राष्ट्रीय औसत से बहुत ज्यादा है.वर्ष 2018 में जब सजा सुनाने की राष्ट्रीय औसत दर  34.2 फीसद थी, तब बिहार में यह दर 71.2 फीसद थी. वर्ष 2019 में जब राष्ट्रीय औसत दर 34.9 फीसद थी, तब बिहार में यह 67.7 फीसद थी.उस वर्ष 1540 मामले पोक्सो कोर्ट के सामने आये थे.


क्या होता है पोक्सो एक्ट?

POCSO एक्ट का पूरा नाम “The Protection Of Children From Sexual Offences Act” या प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट है. हिंदी में इसे “लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012” कहते हैं. पोक्सो एक्ट-2012; को बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न और यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए, महिला और बाल विकास मंत्रालय ने बनाया था. साल 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है. देश में बच्चियों के साथ बढती दरिंदगी को रोकने के लिए ‘पाक्सो ऐक्ट-2012’ में बदलाव किया गया है, जिसके तहत अब 12 साल तक की बच्ची से रेप के दोषियों को मौत की सजा मिलेगी. इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में सख्त कार्रवाई की जाती है. वहीं, एक्ट के सेक्शन 35 के अनुसार, अगर कोई विशेष परिस्थिति ना हो तो इसके केस का निपटारा एक साल में किया जाना होता है.

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