विचार : बाबा, बुलडोजर और वो... - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 1 मई 2022

विचार : बाबा, बुलडोजर और वो...

  • बुलडोजर बाबा की रफ़्तार रोकने में रोड़ा बनेगा राजस्व विभाग 

bulldozer-baba
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बार - बार अधिकारियों को नसीहत व बुल्डोजर बाबा का सक्रियता से अपराधियों व बाहुबलियों पर बुलडोजर का चलाना एक अच्छी पहल व कर्मठता सिद्ध करता है लेकिन राजस्व कर्मियों का रोड़ा बनना कहीं न कहीं बाबा की कार्ययोजना पर पानी सा फेरना भी समझ आता है। साफ जाहिर है कि प्रत्येक तहसील प्रशासन व क्षेत्रीय लेखपाल से लेकर कानूनगो व कानूनगो से लेकर तहसीलदार एवं तहसीलदार से लेकर उपजिलाधिकारी तक सभी को पता है कि किस क्षेत्र में किस - किस सरकारी जमीन पर किस - किस बाहुबली या सामान्य व्यक्ति ने सरकारी जमीन पर अवैध कब्ज़ा कर रखा है लेकिन इतना सब जानकारी होने के बाद भी स्वतः संज्ञान लेकर कार्यवाही न किया जाना आखिकार किसका दोष है? वैसे हिस्ट्रीशीटर व हाई प्रोफाइल दोषियों पर प्रत्यक्ष रूप से मुख्यमंत्री के निर्देश पर जिलाधिकारी के माध्यम से बुलडोजर चलना कोई बड़ी बात नहीं, बड़ी बात तो तब होगी जब तहसील स्तर पर प्रशासनिक अमले द्वारा बिना भेदभाव व बिना लेनदेन सरकारी संपत्ति को अतिक्रमणकारियों से मुक्त कराया जाए। प्रत्येक तहसील स्तर पर सरकारी भूमि में बंजर, ऊसर, नवीन परती, गौचर, आबादी, ग्राम समाज, तालाब, वन विभाग सहित अन्य मदों की जमीन का होना स्वाभाविक व आम बात है और इस प्रकार की आरक्षित भूमियों पर कहीं न कहीं और किसी न किसी का कब्जा होना भी स्वाभाविक है लेकिन लेखपाल स्तर से कानूनगो स्तर तक या इससे भी ऊपर के स्तर कर खाऊ कमाऊ नीति के चलते लेनदेन कर प्रशासन द्वारा अतिक्रमणकारियों को वरदान देना भी आम बात है। 


गौरतलब है कि शासन द्वारा चलाये जाने वाले आमजनमानस को न्याय देने व न्याय दिलाने की प्रक्रिया में जमीनी स्तर पर चलाये जाने वाले शासन के कार्यक्रमों जैसे आईजीआरएस, सम्पूर्ण समाधान तहसील दिवस, संपूर्ण समाधान थाना दिवस आदि से लेकर जनता दर्शन तक अधिकांशतः जमीनी विवाद से ही संबंधित शिकायतों का पाया जाना बहुत कुछ दर्शाता है जिससे कयास लगाया जा सकता है कि राजस्व प्रशासन की ढुलमुल रवैया व खाऊ - कमाऊ नीति के चलते ही जमीनी विवाद का बढ़ना स्पष्ट है, इतना ही नहीं राजस्व विभाग का एक शब्द जिसे "खर्चा" कहा जाता है जिसकी परिभाषा ही अन्यायप्रिय सिद्ध करता है। एक छोटा सा उदाहरण है कि कोई भी व्यक्ति यदि तहसील प्रशासन से या यूं कहें कि अपने हल्का लेखपाल से अपने जमीन के संबंध में कोई जानकारी प्राप्त करना चाहे तो पहले उसे "खर्चा" प्रक्रिया से पर होना पड़ेगा तब कोई जानकारी संभव है फिर चाहे वो मामला खसरा खतौनी से लेकर वरासत तक ही क्यूँ न हो या किसी ज़मीनी प्रकरण में लेखपाल व कानूनगो की आख्या रिपोर्ट का ही मामला क्यों न हो। क्योंकि परिवार सदस्यता प्रमाणपत्र से लेकर पैमाइश संबंधित प्रकरण के साथ हर एक का रेटलिस्ट जो तैयार है वो भी शीर्ष अधिकारियों का नाम लेकर उनकी भी संलिप्तता दर्शाते हुए अवैध वसूली होना आम बात है।


आज तहसील के इन कर्मचारियों में एक बात और आम हो गयी कि जमीनों के ख़रीदाने व बेचवाने में अहम भूमिका निभाते हुए अपनी ड्यूटी निभाने में ज्यादा रुचि लेते हैं, फिर चाहे लेखपाल हों या फिर कानूनगो स्तर का कर्मचारी ही क्यूँ न हो। ऐसे में बड़ा सवाल यही बनता है कि बुलडोजर बाबा के अभियान को बल कैसे मिलेगा? क्या राजस्व अमला खर्चा लेने के बाद अपने विभाग या शासन से वफादार रह पाएगा? क्या राजस्व विभाग के निचले स्तर के व्यवस्थित कर्मचारियों के आगे शासन वास्तविक कार्य कर पाएगा? क्या निचले स्तर पर जिसका खाएंगे उसका बजायेंगे वाली कहावत चरितार्थ नहीं होगी? क्या पूर्व से खर्चा जैसे अवैध वसूली करने वालों का चलन बदलेगा?





शीबू खान (पत्रकार) 

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