कविता : औरत कोई सामान नहीं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

कविता : औरत कोई सामान नहीं

औरत है, कोई सामान नहीं।


अकेली है, मगर कमजोर नहीं।।


सिर्फ जिस्म नहीं, जान भी होती है।


आत्मा हर पल उसकी रोती है।


छूटा अपनों का साथ, मां की ममता वह दुलार।


सोचा मिलेगा नया घर, नया संसार।।


दर्द अपनों से मिला, तकलीफ भी अपनों से।


घुट सी गई अंदर ही अंदर, बिखर गई वह टूट कर।


बहुत रो लिया अब हंस कर, जीना चाहती है।


सिमट गई थी बहुत वह, अब बिखरना चाहती है।।


बगिया के फूलों की तरह बस निखरना चाहती है।


टूटना नहीं, पिघल कर बह जाना चाहती है।


अपनी थोड़ी सी खुशियों को जी भर कर जीना चाहती है।


क्योंकि वह औरत है कोई सामान नहीं।।।।



नीलम ग्रेंडी
नीलम ग्रेंडी

चोरसौ, गरुड़

बागेश्वर, उत्तराखंड

(चरखा फीचर)

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