कविता : स्त्री - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 6 अगस्त 2022

कविता : स्त्री

उसकी एक मुस्कान हर गम को भूला देती है।


इसका एक स्पर्श ममता भी कहलाती है।।


वह जन्म देती है, सारी दुनिया को।


दुर्गा भी वही, काली भी कहलाती है।।


वह गुज़रती है कई पीड़ा से।


उसकी जिंदगी कभी दहेज तो कभी भूख से मर जाती है।।


स्त्री ही जीवन को संवारती है।।


फिर कैसे वह बोझ बन जाती है।।


मोहताज नहीं होती वो किसी गुलाब की।


वो तो बागबान होती है इस कायनात की।


वो स्त्री है, जीवन को निखारती है।।




कुमारी रितिका

कुमारी रितिका

कक्षा-11वीं

चोरसौ, गरुड़

बागेश्वर, उत्तराखंड

(चरखा फीचर)

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