कविता : लड़कियों के सपने परंपराओं ने तोड़े - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 2 अक्तूबर 2022

कविता : लड़कियों के सपने परंपराओं ने तोड़े

हमारे भी है सपने, हम भी कुछ बने।


हम भी कुछ कर के दिखाएं।।


मगर लोगों के ताने, सुन-सुनकर सभी सपने तोड़े।


घुट घुट कर मरते रहे, पर मुंह न खोले।।


चेहरे पर नकली हंसी दिखाते रहे, आंसू छुपाते रहे।


पर परंपरा न तोड़ी, जमाना बोला लड़कियों के नहीं होते सपने।।


मगर हिम्मत न छोड़ी और न हिम्मत तोड़ी।


परंपरा को छोड़े, बेटी को पढ़ाएं, और आगे बढ़ाएं।।


सपने न तोड़ें, हो सके तो साथ निभाएं।




Diksha-aaryaa

दीक्षा आर्य

सिमतोली, कपकोट

बागेश्वर, उत्तराखंड

(चरखा फीचर)

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