कविता : मैंने खुद को इस नजर से देखा है - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शनिवार, 31 दिसंबर 2022

कविता : मैंने खुद को इस नजर से देखा है

मैंने खुद को इस नजर से देखा है।


जिस नजर से दुनिया को मुझे अक्सर नजरअंदाज करते देखा है।।


मैं खुद की नजर  से नजर मिला सकूं, बस इतना खुद को तराशा है।


मझधार में डूब ना जाए यह नजर, खुद से मंजिल तक पहुंचने का वादा है।।


बस खुद से इस दुनिया की नजर में खास बनने का इरादा है।


सुनना चाहती हूं दुनिया से “क्या खुद को तराशा है"।।


कोयला हूं दुनिया की नजर में अभी, चमकता हीरा बनने का इरादा है।


अभी उलझने हैं जीवन में कई, क्षितिज छूकर दिखाऊं, यह खुद से वादा है।।


जैसे मैं एक परिंदा हूं शिकार की तलाश में, एक खूबसूरत आशियाने की फिराक में।


एक खूबसूरत तारों की महफिल सजी, उस महफिल की चांद बनना चाहती हूं मैं।।


अभी नजर में नहीं किसी के मैं, एक दिन बनना चाहे मेरे जैसा कोई।


होना चाहती हूं सबके लिए खास मैं।


जहां से छू सकूं चांद को, जाना चाहता हूं उसके इतने पास मैं।।


 



Manju-dhapola

मंजू धपोला

कपकोट, बागेश्वर

उत्तराखंड

चरखा फीचर

कोई टिप्पणी नहीं: