शिव को संहार का देवता भी कहा जाता है। शिव सौम्य एवं रौद्र दोनों रूपों के लिए विख्यात हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं।रावण, शनिदेव, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए हैं। शिव मनुष्य, राक्षस, देवता सभी को समान दृष्टि से देखते है इसीलिये उन्हें देवाधिदेव महादेव भी कहा जाता है। मान्यता यह भी है कि इसी दिन भगवान शंकर का पार्वतीजी से विवाह हुआ था।इन्हीं सब कारणों से महाशिवरात्रि का त्यौहार हिंदू-समुदाय में अति महत्त्वपूर्ण और विशिष्ट स्थान रखता है। महाशिवरात्रि को उपवास और ध्यान के माध्यम से जीवन और जगत में सांसारिक बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए शिव-शक्ति का स्मरण करना पूरी मानवता के लिए शुभंकारी माना गया है। महाशिवरात्रि वह रात्रि है जब भगवान शिव और देवी शक्ति की दिव्य शक्तियां एक-साथ प्रादुर्भूत होती हैं। यह भी माना जाता है कि इस दिन ब्रह्माण्ड आध्यात्मिक-ऊर्जा को आसानी से विकीर्ण अथवा उत्सर्जित करता है।महाशिवरात्रि-व्रत का पालन उपवास, भगवान शिव का ध्यान, आत्मनिरीक्षण, सामाजिक सद्भाव और शिव मंदिरों में पूजन-अर्चन द्वारा किया जाता है। दिन के दौरान मनाए जाने वाले अन्य हिंदू त्योहारों के विपरीत महाशिवरात्रि एक अनूठा त्योहार है जो रात के समय मनाया जाता है।
पुराणों के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही समुद्र मंथन हो रहा था। मंथन के दौरान विषकलश निकला जिसे भगवान शिव ने संपूर्ण ब्राह्मांड की रक्षा के लिए स्वंय पीने का जोखिम उठाया और विष को अपने गले में रोके रखा।विष के गहन दुष्प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया गया। यह देख वहां खड़े सभी देवतागण मुदित हुए और भगवान शिव को ‘नीलकंठ’ नाम देकर जय-जय कार करने लगे। महाशिवरात्रि के दिन सुबह से ही शिवमंदिरों में कतारें लग जाती हैं।लोग जल से तथा दूध से भगवान शिव का अभिषेक करते हैं।कतिपय भक्तजन गंगाजल से भी शिवलिंग को स्नान कराते हैं।कुछ लोग दूध, दही, घी, शहद और शक्कर के मिश्रण से भगवान शंकर का अभिषेक कर उसे स्नान कराते हैं।स्नान कराकर भोले शंकर पर चंदन लगाकर उन्हें फूल, बेल के पत्ते आदि अर्पित किये जाते हैं।धूप और दीप से भगवान शिव का पूजन किया जाता है।भगवान शिव को बेल के पत्ते अतिप्रिय हैं।इसलिए लोग उन्हें बेलपत्र अर्पण करते हैं।भोलेनाथ को बेलपत्र क्यों प्रिय हैं,इसके पीछे एक कथा है।मान्यता है कि माता पार्वती ने कई वर्षों तक भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने हेतु पूजा-अर्चना और व्रत-उपवास किया था।एक समय ऐसा भी आया जब माता पार्वती ने केवल एक समय एक बेलपत्र खाकर व्रत-उपवास किया।तब माता पार्वती के इस अपूर्व और कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी-रूप में महाशिवरात्रि के दिन ही स्वीकार किया। इसी कारण से भगवान शिव को बेलपत्र अतिप्रिय हैं।
महाशिवरात्रि को रात्रि जागरण का भी विधान है।लोग शिवमंदिरों में अथवा घरों में पूरी-पूरी रात जागकर भगवान शिव की आराधना करते हैं।कई लोग इस दिन शरीर और मन को पवित्र करने के लिए उपवास भी रखते हैं।कुछ लोग निर्जल रहकर उपवास करते हैं। महाशिवरात्रि से संबंधित कई पौराणिक कथाएँ भी जुड़ी हुयी हैं जो बहुत प्रेरणादायक हैं।ऐसी ही एक कथा में चित्रभानु नामक एक शिकारी का उल्लेख मिलता है।चित्रभानु को महाशिवरात्रि के व्रत का कोई ज्ञान नहीं था।वह जंगल के जानवरों को मारकर अपना जीवन-यापन करता था।एक बार महाशिवरात्रि के दिन अनजाने में उसे शिवकथा सुनने को मिली।शिवकथा सुनने के बाद वह शिकार की खोज में जंगल गया।वहाँ शिकार का इंतज़ार करते-करते वह अनजाने में बेल के पत्ते तोड़कर घास के ढेर के नीचे ढँके हुए शिवलिंग पर फेंकता गया।उसके इस कार्य से प्रसन्न होकर भगवान शिव उसका ह्रदय निर्मल बना देते हैं।शिकारी के मन से हिंसा के विचार नष्ट हो जाते हैं।उस दिन के बाद से चित्रभानु शिकारी का जीवन छोड़ देता है।इस कहानी से हमें भगवान शिव की दयालुता का परिचय मिलता है कि वे अनजाने में की हुई पूजा का भी फल प्रदान करते हैं।एक हिंसक शिकारी का ह्रदय करुणामय बना देते हैं।इस तरह महाशिवरात्रि का त्योहार प्राणिमात्र के प्रति दया और करुणा का संदेश देता है।
धार्मिक ग्रंथों में ऐसा विधान है कि भगवान शिव की पूजा करने से सारे सांसारिक मनोरथ पूरे हो जाते हैं।नीति-नियम से न हो सके तो साधारण तरीके से पूजा करने पर या सिर्फ उन्हें स्मरणमात्र कर लेने पर भी भगवान शिव तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं।तभी उन्हें ‘आशुतोष’ भी कहा जाता है.हमारे देश का हर त्योहार हमें इकट्ठा होने, खुशियाँ बाँटने, और समाज के हित में कुछ करने का मौका देता है।हमें चाहिए कि महाशिवरात्रि के दिन हम समाज के हित के लिए अपनी क्षमता के अनुसार कुछ-न-कुछ परोपकार से प्रेरित होकर कोई-न-कोई अच्छा कार्य अवश्य करें।कई संस्थाएँ इस दिन रक्तदान शिविर का आयोजन करती हैं तो कई दूसरी संस्थाएँ दीन-दुखियों में भोजन-वितरण का प्रबंध करती हैं।कई लोग गरीबों को दान भी देते हैं।परहित में किये गए ये सारे कर्म हमारी आत्मा का विस्तार करते हैं और हमें परमपिता परमेश्वर के करीब ले जाने में सहायक होते हैं। आइये आज के दिन हम शुद्ध मन से भगवान शिव से प्रार्थना करें कि जिस तरह उन्होंने शिकारी चित्रभानु के ह्रदय को निर्मल और पवित्र किया था,विष पीकर सकल सृष्टि को निरापद किया था, उसी तरह हमारे ह्रदय को भी भोले-शंकर निर्मल और पवित्र कर दें। संसार में व्याप्त आधि-व्याधि,कष्ट-संकट और अशांति-विक्षोभ को दूर कर हमें आत्मिक शान्ति प्रदान करें।
—डा० शिबन कृष्ण रैणा—
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