सीहोर : संकल्प वृद्धाश्रम में मनाई गई प्रभु वल्लभाचार्य जयंती - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 4 मई 2024

सीहोर : संकल्प वृद्धाश्रम में मनाई गई प्रभु वल्लभाचार्य जयंती

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सीहोर। हर साल की तरह इस साल भी शहर के सैकड़ाखेड़ी स्थित संकल्प वृद्धाश्रम में श्रद्धा भक्ति सेवा समिति के तत्वाधान वरुथिनी ग्यारस और प्रभु वल्लभाचार्य जयंती का आयोजन धूमधाम से किया गया। इस मौके पर जिला पंचायत सीईओ आशीष तिवारी अपने परिवार के साथ पहुंचे और यहां पर निवासरत वृद्धजनों को भोजन प्रसादी वितरण की। इस मौके पर सामाजिक न्याय विभाग के उपसंचालक महेश यादव, समिति की ओर से श्रीमती निशा सिंह, उज्जैन शनि मंदिर के पुजारी सचिन त्रिवेदी, पंडित सुनील पाराशर, मनोज दीक्षित मामा, केन्द्र के प्रभारी नटवर सिंह, विकास अग्रवाल, सर्वेश निगम आदि मौजूद थे।


पुजारी पंडित श्री त्रिवेदी के मार्गदर्शन में सुबह भजन कीर्तन का आयोजन किया गया था और शाम को भी प्रसादी का वितरण किया गया। उन्होंने कहा कि श्री वल्लभाचार्य ने प्रत्येक जीवात्मा को परमात्मा का अंश माना है। उनके अनुसार, परमात्मा ही जीव-आत्मा के रूप में संसार में छिटका हुआ है। यानी हर व्यक्ति परमात्मा का ही अंश है। इसी आधार पर वल्लभ ने किसी को भी कष्ट या प्रताडऩा देना अनुचित बताया है। श्री कृष्ण भक्ति के भक्तिकालीन प्रणेता श्री वल्लभाचार्य जी की जयंती भारत में किसी लोकप्रिय त्योहार से कम नहीं है। श्री वल्लभाचार्य की जंयती पूरे भारत में धूमधाम से मनाई जाती है। लोकप्रिय पौराणिक धारणा है कि इस दिन भगवान कृष्ण को श्रीनाथजी के रूप में वल्लभाचार्य ने देखा था, जिन्हें पुष्टि संप्रदाय के संस्थापक कहा जाता है। इसलिए, श्रीनाथजी के रूप में भगवान कृष्ण की पूजा की गई और जिसे वल्लभाचार्य ने उचित ठहराया, जो वैष्णव संप्रदाय के सबसे लोकप्रिय संतों में से एक थे। पंडित श्री त्रिवेदी ने कहा कि वल्लभ संप्रदाय वैष्णव संप्रदाय के अंतर्गत आता है। संप्रदाय की स्थापना वल्लभ आचार्य के द्वारा की गई थी। इस दिन श्रीनाथ जी के मंदिरों में प्रसाद चढ़ाया जाता है और वितरण भी किया जाता है। वल्लभ आचार्य जयंती एकादशी तिथि को पड़ती है इसलिए इस तिथि का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। वैशाख माह में कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को वरूथिनी एकादशी के साथ ही श्री वल्लभ आचार्य जयंती भी मनाई जाती है। आचार्य वल्लभ एक दार्शनिक थे। इन्हें पुष्य संप्रदाय का संस्थापक माना जाता है। लोकप्रचलित मान्यातओं के अनुसार वल्लभाचार्य ही वे व्यक्ति थे जिन्हें श्रीनाथ जी के रूप में भगवान श्री कृष्ण से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ था। इन्हें अग्नि देवता का पुर्नजन्म माना जाता है।

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