कविता : उजड़ी जिंदगी नशे से - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 19 मई 2024

कविता : उजड़ी जिंदगी नशे से

चलो चलते हैं गांव की ओर,

उस गांव में बसे हैं लाखों लोग,

हर एक की उजड़ी है जिंदगी,

उसमें थी कई नन्ही सी जिंदगी,

उनके साथ हुआ नशे का खिलवाड़,

इससे हुआ बर्बाद कई परिवार,

कोई गिरता है पहाड़ों से,

तो कोई पड़ा है नालों में,

यह हर रोज का हो गया ड्रामा,

फिर भी युवा है नशे का दीवाना,

क्या खूब लिखी नशे ने अपनी कहानी,

कभी लड़ने तो, कभी मरने की ज़ुबानी,

वह भटकाता है हर एक युवा को,

कभी कहता है आ पी ले मुझको,

कभी कहता हैं मैं तेरे पास आऊंगा,

जीवन में तुझे नहीं भटकाऊँगा,

मगर वह झूठ बोलता रहा,

और युवाओं को भटकाता रहा,

फिर गांव का एक युवा बोला,

मैं तो शराब के पास जाऊंगा,

और उसका सेवन करके आऊंगा,

इस तरह उजड़ गई उसकी हस्ती,

उजड़ गई फिर उसकी बस्ती,

उजड़ा एक मां का लाल,

उजड़ गया फिर धीरे-धीरे,

इस बस्ती का हर एक लाल,

याद रखो नशा है बुरी लानत,

छोड़ दो इसकी आदत।।





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पिंकी अरमोली

गरुड़, उत्तराखंड

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