सब कहते हैं औरत देवी का रूप है,
फिर क्या ही फ़र्क पड़ता है वह सुंदर है या कुरूप है,
पति ज़िंदा हो तो सुहागन और ना हो तो अभागन का स्वरूप है,
अरे ! यह तो खा गई अपने पति को, देखो कितनी मनहूस है,
पता नहीं कहां जाती है काम के बहाने?
देखो तो सही कितनी मसरूफ है,
शर्म नहीं है इसे, पति मर गया और रंगीन दुपट्टे ओढ़ने लगी है,
अब तो मत ही कहो कि यह शरीफ़ है,
मदद मांगे भी तो किस से, लोगों को तो बुरी लगती उसकी तशरीफ़ है,
अरे! देखो तो सही, इतनी ऊंची आवाज़ में बातें करने लगी है,
ना कोई शर्म न लिहाज, फिर कहती है कि इसमें मेरा क्या कसूर है?
दुनिया ने उसके देखे हुए सारे सपनों को अनदेखा कर दिया,
देखे भी तो क्या? उसके सारे ख़्वाब अब चकनाचूर है,
बड़ी शौक़ीन थी वह दूसरों की ज़िंदगी में रंग भरने की,
खत्म हो गई उसकी सारी रंगत, अब वह जैसे बेनूर है,
बेबस और हताश कर दिया उसे लोगों के तानों ने,
अब नहीं रहा उसके चेहरे पर कहां कोई नूर है,
लेकिन फिर भी वह अपनी माँ के लिए हीरा और कोहिनूर है,
अपने ही बच्चों की शादी वाले रस्मों में शामिल नहीं हो सकती,
क्योंकि वह एक विधवा है और बिना पति के औरत का कोई अस्तित्व नहीं,
उसे बार बार याद दिलाने का ठेका जो ले रखा है समाज के ठेकेदारों ने,
आपको नहीं पता क्या? समाज का यही तो कारोबार है,
जब बड़े लोगों के घरों में काम करने जाती एक औरत,
मजबूरी का फायदा उठाते हैं लोग और समझते उसे मशीन हैं,
बहुत थक जाती है, फिर भी काम करती रहती है,
वह औरत है, बहुत सहनशील इसकी तासीर है,
कभी किसी ने इज़्ज़त नहीं दी, ना ही की कभी प्यार से बात,
जब बह चल बसी दुनिया से, सब कहने लगे देवी का रूप थी,
देखो तो सही, उसकी कितनी सुंदर तस्वीर है
सविता देवी
कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश
चरखा फीचर
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