कविता : आज़ाद देश की आज़ादी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 8 सितंबर 2024

कविता : आज़ाद देश की आज़ादी

कहने को तो हम आज़ाद देश की वासी हैं,

फिर भी आधी आबादी हिंसा की दासी है,

अपने कोख में जिसे पालती और दूध पिलाती,

फिर भी स्त्री हर वक़्त उसी से है डरती,

जिस स्तन का दूध पीकर बनता है मर्द,

औरत को हमेश अबला बोल और दिया दर्द,

प्रकृति के उपवन में नारी की हुई जो सृष्टि,

संसार की रचना में सुगंधित करती वृद्धि,

अफ़सोस इस ज़ुल्मी ज़माने की,

न दिया इज्जत, न मान और न ही आज़ादी






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यशोदा कुमारी

गया, बिहार

चरखा फीचर

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