कविता : मंज़िल एक रास्ते हैं अनेक - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


गुरुवार, 31 अक्टूबर 2024

कविता : मंज़िल एक रास्ते हैं अनेक

मंज़िल एक रास्ते हैं अनेक,

मंज़िल पाने वाले भी अनेक,

चाहे मंज़िल दूर हो, उसे पाना है,

चाहे रास्ते बंद हो जाये, 

नये रास्ते ढूंढने हैं हमें,

मंज़िल हैं कोसो दूर,

जिस रास्ते पर चले,

सही रास्ते पर हम चले,

हर बार घटनाएं होती हैं,

मगर इनसे पीछा छुड़ा कर,

हम पहुंचेंगे अपनी मंज़िल तक,

चाहे वो कितनी भी दूर हो,

उसे लायेगें अपने तक,

हम चाहे थक जाएं,

मगर हार कभी नहीं मानेंगें,

वो हमारा हक है उसे पाकर रहेंगे,

अपने हौसलों को टूटने नहीं देंगे,

हासिल करके रहेंगे अपनी पहचान॥




Khushboo-kumari-charkha-feature


कुमारी खुशबू

कक्षा-8 उम्र-13

पल्सो, उत्तराखंड

चरखा फीचर्स

कोई टिप्पणी नहीं: