सीहोर : सात दिवसीय भागवत कथा के समापन के पश्चात भव्य भंडारे का आयोजन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 1 दिसंबर 2024

सीहोर : सात दिवसीय भागवत कथा के समापन के पश्चात भव्य भंडारे का आयोजन

  • मित्रता में स्वार्थ नहीं समर्पण होना चाहिए-कथा व्यास पंडित राघवेन्द्राचार्य महाराज

Bhagwat-katha-sehore
सीहोर। मित्रता में स्वार्थ नहीं त्याग और समर्पण होना चाहिए। सुदामा हर सिद्धांत का पालन करते हैं। मित्रता स्वार्थ परायणता के लिए नहीं अपितु समर्पण के लिए हैं। आज का हर व्यक्ति प्राय अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए मित्र बनाता है और काम निकल जाने के बाद उसकी मित्रता समाप्त हो जाती है। उक्त विचार शहर के चाणक्यपुरी स्थित श्री गोंदन सरकार धाम में श्री गोंदन सरकार हनुमान महाराज की असीम अनुकंपा एवं दिव्य संरक्षण द्वारा बह्मलीन अनंत श्री पंडित महावीर शरण चतुर्वेदी दद्दा की पावन पुण्य स्मृति प्रतिवर्षानुसार संगीतमय श्रीमद भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। इस दौरान कथा के विश्राम दिवस पर कथा व्यास पंडित राघवेन्द्राचार्य महाराज अयोध्याधाम ने कहे। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती भारतीय संस्कृति में सच्ची मित्रता का प्रतीक मानी जाती है। उनकी दोस्ती न केवल आदर्श थी, बल्कि उसमें कुछ ऐसे गुण भी थे जो हर मित्रता को मजबूत और स्थायी बना सकते हैं।  सुदामा ने भगवान कृष्ण पर अटूट विश्वास रखा। उन्होंने अपने मित्र से गरीबी के संघर्ष साझा करने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई। कृष्ण ने भी सुदामा पर विश्वास जताते हुए उनकी मदद के लिए तत्परता दिखाई। उनकी मित्रता हमें सिखाती है कि दोस्ती भरोसे पर टिका रिश्ता है। दोस्तों के बीच विश्वास होना चाहिए, इससे कोई भी कठिनाई उनके रिश्ते को कमजोर नहीं कर सकती है।


रविवार को विश्राम दिवस के मौके पर कथा व्यास पंडित राघवेन्द्राचार्य न राजा परीक्षित संवाद, शुकदेव जन्म, कपिल संवाद का प्रसंग सुनाया। शुकदेव परीक्षित संवाद का वर्णन करते हुए कहा कि एक बार परीक्षित महाराज वनों में काफी दूर चले गए। उनको प्यास लगी, पास में समीक ऋषि के आश्रम में पहुंचे और बोले ऋषिवर मुझे पानी पिला दो मुझे प्यास लगी है, लेकिन समीक ऋषि समाधि में थे, इसलिए पानी नहीं पिला सके। परीक्षित ने सोचा कि इसने मेरा अपमान किया है मुझे भी इसका अपमान करना चाहिए। उसने पास में से एक मरा हुआ सर्प उठाया और समीक ऋषि के गले में डाल दिया। यह सूचना पास में खेल रहे बच्चों ने समीक ऋषि के पुत्र को दी। ऋषि के पुत्र ने नदी का जल हाथ में लेकर शाप दे डाला जिसने मेरे पिता का अपमान किया है आज से सातवें दिन तक्षक नामक सर्प पक्षी आएगा और उसे जलाकर भस्म कर देगा। समीक ऋषि को जब यह पता चला तो उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा कि यह तो महान धर्मात्मा राजा परीक्षित है और यह अपराध इन्होंने कलियुग के वशीभूत होकर किया है। देवयोग वश परीक्षित ने आज वही मुकुट पहन रखा था। समीक ऋषि ने यह सूचना जाकर परीक्षित महाराज को दी कि आज से सातवें दिन तक्षक नामक सर्प पक्षी तुम्हें जलाकर नष्ट कर देगा। यह सुनकर परीक्षित महाराज दुखी नहीं हुए और अपना राज्य अपने पुत्र जन्मेजय को सौंपकर गंगा नदी के तट पर पहुंचे। वहां पर बड़े बड़े ऋषि, मुनि देवता आ पहुंचे और अंत मे व्यास नंदन शुकदेव वहां पर पहुंचे। शुकदेव को देखकर सभी ने खड़े होकर शुकदेव का स्वागत किया। शुकदेव इस संसार में भागवत का ज्ञान देने के लिए ही प्रकट हुए हैं।


भव्य भंडारे का आयोजन

इस संबंध में जानकारी देते हुए पंडित जितेन्द्र चतुर्वेदी ने बताया कि रविवार को सात दिवसीय भागवत कथा के विश्राम दिवस के मौके पर आरती हवन और भंडारे का आयोजन किया गया था। इस मौके पर कथा व्यास पंडित राघव मिश्रा, विधायक सुदेश राय, नगर पालिका अध्यक्ष प्रिंस राठौर, सीताराम यादव, जिला संस्कार मंच के संयोजक जितेन्द्र तिवारी, मनोज दीक्षित मामा, यजमान अशोक गोयल, मधु गोयल आदि ने आरती की। 

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