- आज के समय में हर घर में लड़ाई और अशांति का वातावरण : महंत उद्ववदास महाराज
सीहोर। शहर के सीवन नदी के घाट पर गंगेश्वर महादेव, शनि मंदिर परिसर में जारी संगीतमय नौ दिवसीय श्रीराम कथा के दौरान मंगलवार को महंत उद्ववदास महाराज ने भगवान श्रीराम वनवास और केवट प्रसंग का विस्तार से वर्णन किया। इससे लोगों की आंखे नम हो गई। महाराज ने कहा कि आज के समय में हर घर में लड़ाई और अशांति का वातावरण है, लोगों को श्रीराम के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। श्रीराम के आदर्श और राम की कथा ऐसे संतप्त जीवन में अमृत की धार जैसा काम करती है। जहां पर मौजूद श्रद्धालु से कहा कि अगर सीता जैसी बहू चाहिए तो कौशल्या जैसी सास बनना पड़ेगा। हर पिता चाहते हैं कि उनका पुत्र राम जैसा हो पर क्या वे दशरथ जैसे हैं, उन्हें भी दशरथ जैसा ही बनना पड़ेगा तभी राम जैसा पुत्र होगा। संतों द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने से जीवन सुखमय होता है। जब भगवान पिता की आज्ञा से वनगमन करने जा रहे थे, तभी माता कौशल्या आंखों में आंसू लेकर सीता जी के पास पहुंची और कहा कि उन्हें अपने पुत्र राम का वनवास जाना तो एक बार मंजूर हो सकता है, लेकिन सीता तुम क्यों वनवास जा रही हो। उन्होंने सीता जी को बहुत समझाया। महंत उद्ववदास महाराज ने कहा कि भारतीय धर्म संस्कृति में भगवान राम आदर्श व्यक्तित्व के प्रतीक हैं। राम के आदर्श लक्ष्मण रेखा की उस मर्यादा के समान है जो लांघी तो अनर्थ ही अनर्थ और सीमा की मर्यादा में रहे तो खुशहाल और सुरक्षित जीवन। परिदृश्य अतीत का हो या वर्तमान का, जनमानस ने रामजी के आदर्शों को खूब समझा-परखा है लेकिन भगवान राम की प्रासंगिकता को आज भी माना है। रामजी का पूरा जीवन आदर्शों, संघर्षों से भरा पड़ा है उसे अगर सामान्यजन अपना ले तो उसका जीवन स्वर्ग बन जाए। मानवता के उद्धार के लिए भगवान श्रीराम वन गए थे।
उन्होंने भगवान श्रीराम के वनगमन का विस्तार से वर्णन किया। वनगमन के प्रसंग पर यहां पर उपस्थित श्रद्धालु भाव विभोर हो गए। भगवान राम का वन गमन सिर्फ पिता का आदेश नहीं था, न ही रानी कैकेयी का हाथ था बल्कि यह तो स्वयं नारायण की इच्छा थी। निमित्त बने गुरु वशिष्ठ। गुरु वशिष्ठ चाहते थे कि रावण के अत्याचार से मानवता को मुक्ति मिले। श्रीराम का वन गमन वास्तव में पीड़ित मानवता को राक्षसों के आतंक से मुक्ति दिलाने की यात्रा थी। इस यात्रा में मानवता का कल्याण निहित था। धन्य हैं कैकेयी जैसी मां जिन्होंने सारा कलंक अपने ऊपर लेकर राम जैसे पुत्र को मानव जाति के कल्याण के लिए वन पथ पर भेज दिया। जिस समय प्रभु श्रीराम वन जाने के लिए अयोध्या से प्रस्थान किए उस समय राजा दशरथ अथाह पीड़ा से दुखी थे, राजमहल में शोक व्याप्त था, नगर वासी शोक में डूबे थे। कहां तो इस प्रासाद में राम के राज्याभिषेक तैयारी हो रही थी और अचानक वन यात्रा ने सभी को शोकाकुल कर दिया। शहर के सीवन नदी के तट पर ऊंकार प्रसाद जायसवाल परिवार के तत्वाधान में समस्त सनातन प्रेमी भक्तजन के तत्वाधान में जारी नौ दिवसीय श्रीराम कथा में गुरुवार को भरत मिलाप का प्रसंग का आयोजन किया जाएगा। कथा दोपहर दो बजे से आरंभ होती है।
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