- आज किया जाएगा नौ दिवसीय श्रीराम कथा का भव्य समापन, हवन और प्रसादी का किया जाएगा वितरण

सीहोर। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के आदर्श समाज में आज भी कायम है। भगवान प्रेम भाव देने वाले का हमेशा कल्याण करते हैं। भरत ने भगवान राम के वनवास जाने के बाद खड़ाऊं को सिर पर रखकर राजभोग की बजाय तपस्या की। कहा कि जीवन में भक्ति और उपासना का अलग महत्व है। निष्काम भाव से भक्ति करने वाले की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। उक्त विचार शहर के सीवन नदी के घाट पर गंगेश्वर महादेव, शनि मंदिर परिसर में जारी संगीतमय नौ दिवसीय श्रीराम कथा के दौरान महंत उद्ववदास महाराज ने कहे। गुरुवार को कथा के दौरान भगवान श्रीराम और भरत मिलाप के अलावा, केवट प्रसंग और शबरी प्रसंग का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने कहा कि प्रबल प्रेम के पाले पड़कर प्रभु को नियम बदलते देखा। भगवान केवट के समीप आए। गंगाजी का किनारा भक्ति का घाट है और केवट भगवान का परम भक्त है, किंतु वह अपनी भक्ति का प्रदर्शन नहीं करना चाहता था। अत: वह भगवान से अटपटी वाणी का प्रयोग करता है। केवट ने हठ किया कि आप अपने चरण धुलवाने के लिए मुझे आदेश दे दीजिए, तो मैं आपको पार कर दूंगा केवट ने भगवान से धन-दौलत, पद ऐश्वर्य, कोठी-खजाना नहीं मांगा। उसने भगवान से उनके चरणों का प्रक्षालन मांगा। केवट की नाव से गंगा पार करके भगवान ने केवट को उतराई देने का विचार किया। सीता जी ने अर्धागिनी स्वरूप को सार्थक करते हुए भगवान की मन की बात समझकर अपनी कर-मुद्रिका उतारकर उन्हें दे दी। भगवान ने उसे केवट को देने का प्रयास किया, किंतु केवट ने उसे न लेते हुए भगवान के चरणों को पकड़ लिया। जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, ऐसे भगवान के श्रीचरणों की सेवा से केवट धन्य हो गया। भगवान ने उसके निस्वार्थ प्रेम को देखकर उसे दिव्य भक्ति का वरदान दिया तथा उसकी समस्त इच्छाओं को पूर्ण किया।
भगवान परीक्षा के नहीं बल्कि प्रतीक्षा के विषय हैं
महंत उद्ववदास महाराज ने कहा कि भगवान श्रीराम तो भाव के भूखे है। भगवान परीक्षा के नहीं बल्कि प्रतीक्षा के विषय हैं। उन्होंने माता शबरी द्वारा भगवान श्रीराम की प्रतीक्षा व उनके मिलन का बड़ा सुंदर वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि मतंग ऋषि के आश्रम में रहकर वह प्रतिदिन भगवान की राह निहारती रहती थी। आखिकार वह दिन भी आ गया जब श्रीराम व लक्ष्मण मतंग ऋषि के आश्रम पहुंचे। जब शबरी को पता चला कि भगवान स्वयं उसके आश्रम आए हैं। तो वह एकदम भाव विभोर हो उठी। माता शबरी ने बड़े आदरभाव से चरण कमल धोने के बाद उन्हें आसन पर बैठाया। भगवान राम शबरी की कुटिया में गए। बताते हैं कि शबरी को उनके गुरु ने कहा था, आप भक्ति करना, भगवान आपसे मिलने आपके पास आएंगे। शबरी सालों-साल कुटिया के झाड़ू लगा कांटे चुनती थी, यही सोचकर की मेरे राम आएंगे तो उनके चुभ न जाएं। शबरी के सरल प्रेम में भगवान ने शबरी के जूठे बेर भी खाए थे। जो संत शबरी के ऐसा करने पर हंसते थे, भगवान उन्हीं से शबरी का पता पूछकर शबरी की कुटिया पहुंचे थे। यानी भगवान प्रेम के भूखे हैं, वे जात-पांत नहीं जानते। भक्ति का महत्व भी समझाया।
आज नौ बजे से की जाएगी कथा
शहर के सीवन नदी के तट पर ऊंकार प्रसाद जायसवाल परिवार के तत्वाधान में समस्त सनातन प्रेमी भक्तजन के तत्वाधान में जारी नौ दिवसीय कथा का समापन शुक्रवार को किया जाएगा। समापन दिवस की कथा एवं हवन सुबह नौ बजे से आरंभ किया जाएगा।
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