ऐसे में बिहार में इन तीन सालों में गोद लिए गए कुल बच्चों में 70 फीसदी बेटियां शामिल रहीं.जारी आंकड़े के अनुसार लोगों में बेटियों के प्रति भावना में बदलाव आ रहा है.बाल संरक्षण इकाई के आधिकारिक सूत्रों की मानें तो दत्तक ग्रहण में रहने वाले बच्चे अमूमन अनाथ बच्चे, सड़कों पर घूमने वाले वैसे बच्चे होते हैं जिनके माता- पिता का पता नहीं चलता.इसके साथ हीं दत्तक ग्रहण संस्थानों में रहने वाले बच्चों में भटकते हुए भीख मांगने वाले बच्चे भी शामिल होते हैं. बताया गया कि ऐसे बच्चों को अनहोनी और किसी प्रकार की दुर्घटना से बचाने के लिए पहले इनका संरक्षण किया जाता हैं. इसके बाद विभिन्न माध्यमों से इनके जैविक माता- पिता की खोज कराई जाती है.माता- पिता का पता नहीं चल पाने की स्थिति में ऐसे बच्चों की बेहतर भविष्य के लिए इन्हें दत्तक ग्रहण की साइट पर पंजीकृत कर दिया जाता है. बताया गया कि जो भी दंपत्ती बच्चों को गोद लेना चाहते हैं उन्हें दत्तक ग्रहण के लिए भारत सरकार के केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (कारा) में आवेदन देना पड़ता है. इसके बाद इच्छुक दंपत्ती को दत्तक ग्रहण के विभिन्न प्रावधानों की प्रक्रिया पूरी करनी होती हैं. प्रक्रिया पूर्ण होने पर हीं बच्चे को दत्तक माता- पिता को सुपुर्द किया जाता है.

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