जंजीरों से बंधे सपने हमारे,
खुले आसमान के नीचे सोच में डूबे हैं,
क्यों हम पर बनते नियम इतने सारे?
ये सोच कर हम रोते सारे,
कुछ सीखने के लिए हमे रोकते हैं,
पर खुद से कुछ न करते हैं,
हर बात पर टोकना और रोकना,
अपने सपनों को है पूरा कर लेना,
वह दुनिया का नियम समझाने लगा,
हमें भी उद्देश्य समझ में आने लगा,
वो हमें समझा रहा, जिसे खुद न आ रहा है,
दुनिया के रीति रिवाजों से हमें परे जाना है,
हमारे बारे में कहां किसी ने कुछ सोचा है?
सपने साकार न कर पाएंगे मन में ये बैठाया है,
दुनिया वालो ने हमें ये कहीं न कहीं पाया है।।
पूजा बिष्ट
कपकोट, उत्तराखंड
चरखा फीचर्स
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