एम.ए के विद्यार्थी अमित ने अपने वक्तव्य में कहा कि संग्रह की कहानियां वर्चस्ववादियों की असंवेदनहीनता को रेखांकित करती हैं। शोधार्थी साधना ने अपने वक्तव्य में सर्वप्रथम पुस्तक के आवरण का ज़िक्र कर उसे अर्थवान बताया। साधना ने ‘दिहाड़ी’ कहानी का अंश पाठ किया और कहानी में दिखाई गई पितृसत्ता का भी उल्लेख भी किया। उन्होंने सुशीला टाकभौरे की कहानी सिलिया कहानी का ज़िक्र भी किया। संग्रह की सम्पूर्ण कहानियां दलित समाज के संघर्ष को रेखांकित करती हैं। एम.ए की छात्रा सना ने कहा कि दलित कहानी में अनुभव प्राथमिक रूप से विद्यामान होता है जबकि शिल्प का स्थान उसके बाद आता है। अपने वक्तव्य में उन्होंने 'मेले में लड़की' कहानी का ज़िक्र भी किया। शोधार्थी शीलू अनुरागी ने पलायनवादी मानसिकता का ज़िक्र करते हुए सिलिया कहानी को इस संदर्भ में उल्लेखनीय बताया। कौशल पवार की कहानी दिहाड़ी कहानी का उल्लेख कर उन्होंने कहा कि यह अस्वाभाविकता की कहानी है। गांव और शहर का द्वन्द कहानी संग्रह की कहानियों में दिखाई देता है। अंत में पुस्तक के संपादक बजरंग बिहारी तिवारी ने सभी वक्ताओं को धन्यवाद ज्ञापित किया।
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