कौन कहता है कि सिर्फ बच्चे अनाथ होते हैं,
बुढ़ापे में बस वो अकेला ही खड़ा है,
कड़ी धूप में आज भी वो परिश्रम कर रहा है,
अब खुद से खुद का बोझ उठाया नही जाता,
बीमारियों से घिरा उसे शरीर संभाला नहीं जाता,
अब वह बेबस और बेसहारा सा हो गया है,
इस उम्र में उससे खुद खाना बनाया नहीं जाता है,
आँखों से बहता नीर मगर दिल में बसता एक आस है,
बार बार वो कहता इस बेसहारा को सहारा मिल जाता,
कोई उसका हाथ पकड़ता और किनारा मिल जाता,
मगर इस उम्र में अब कहां कोई साथ मिलते हैं,
कौन कहता है कि सिर्फ बच्चे अनाथ होते हैं।।
प्रियंका साहू
मुजफ्फरपुर, बिहार
चरखा फीचर्स

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