एक औरत होना गुनाह था पता नहीं,
उसका हंसना भी पाप था, पता नहीं,
क्या उसका इस दुनिया में आना धोखा था?
पता नहीं, ये तो कुछ भी पता नहीं,
जिसको साथी माना वो कौन था पता नहीं,
जिसको अपना दुख बताया, कौन था पता नहीं,
जिसको दिल में बसाया कौन था पता नहीं,
पढ़ तो सब रहे है हमने क्या पढ़ा, पता नहीं,
क्या तुम पढ़ रहे हो वही,पता नहीं,
क्यों बताना जरूरी नहीं समझा, पता नहीं,
क्या छुपाना जरूरी है? पता नहीं,
कभी दुख को झेला था, पता नहीं,
अब आदत हो गई होगी, पता नहीं,
नहीं पता, नहीं पता, कुछ पता नहीं,
समझ नहीं आता क्या करूं,पता नहीं,
सोचा था कभी, पर अब,पता नहीं,
दुख झेलूं या रहने दूँ, पता नहीं,
तुम्हें दर्द सुनाऊँ, या चुप रहूँ, पता नहीं,
नहीं पता, नहीं पता, कुछ पता नहीं।।
पूजा बिष्ट
कक्षा- 9
पोथिंग, कपकोट
बागेश्वर, उत्तराखंड
चरखा फीचर्स

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