कविता : लड़कियों का बोझ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 26 अप्रैल 2025

कविता : लड़कियों का बोझ

क्या करेगी लड़की पढ़ लिख कर?

जाना तो है उसे किसी और के घर,

क्यों करे उसकी शिक्षा पर खर्च?

जब संभालना है उसे रसोई घर,

इसी सोच ने लड़कियों को रोका है,

उसे आगे बढ़ने पर टोका है,

न पति का घर उसका अपना हुआ,

और पिता का घर भी सपना हुआ,

बीच में रह गई, वह कुछ भी न मिला,

मिला तो सर पर इज़्ज़त का बोझ,

वो रहता हमेशा संग उसके हर रोज़,

कैसे रोकेगी वह इस झूठी मर्यादा को,

नहीं उठता है अब उससे ये बोझ,

थक गई है अब वह और,

नहीं सहा जाता उससे ये अब ठौर,

बंद करो अब तो ये बेवजह का शोर।।




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तनुजा आर्य

लामाबगड़, कपकोट

बागेश्वर, उत्तराखंड

चरखा फीचर्स

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