मैं मासूम सी भली,
जिंदगी में चली,
बढ़ना है आगे,पानी हैं मंज़िलें,
पूरी करनी है ख्वाहिशें,
सूरज की उजली किरणों सी,
बिखर जाऊंगी चारों ओर,
हां बिखर ही तो गई हूं,
न समेट सकी अपनी किरचन,
चुभ रही हूं खुद में ही में,
आग जली है खुद में ही,
हौसला बढ़ा खुद में ही,
लड़ना है मुझे खुद से ही,
आगे बढ़ना है मुझे खुद से
दुनिया को जीतना है मुझे खुद से।।
निर्मला टाक
लूणकरणसर, राजस्थान
चरखा फीचर
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