लो मैं फिर आई हूँ,
कुछ तुम्हें सुनाने को,
अंतर्मन की व्यथा बताने,
राष्ट्रहित लहराने को,
देखो देखो क्या ये हो गया,
क्या नारी के साथ ही होना था,
मैं आई फिर स्त्री के प्रति,
संसार में मातृत्व जगाने को,
बेटी की इस समाज में,
उज्ज्वल छवि बताने को,
ख़ुद का हक़ खुद ही लेना,
ये ही बात उन्हें बताने को,
वंचित जिससे रही है स्त्री,
वो हक़ फिर से दिलाने को,
सावित्रीबाई फुले के सपने को,
साकार बनाने उनकी इच्छा को,
लो मैं फिर आई हूँ,
शिक्षा को लौ जलाने को।।
हुल्लास नायक
नाथूसर, लूणकरणसर
चरखा फीचर
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