- अगर जीवन में थोड़ा दु:ख आए तो भगवान को दोष मत दीजिए : अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा

सीहोर। ईश्वर आपको दर्द, दु:ख और पीड़ा तभी देते हैं जब उन्हें आपको आपके पाप के प्रति जागरूक करना होता है। ये दु:ख आपको आपके संचित पाप कर्मों के कारण अथवा वर्तमान में की जाने वाली गलतियों के कारण मिलते हैं। आप ये पाप कर्म करते जाते हैं और परिणाम के बारे में नहीं सोचते। आपको इन पाप कर्मों के प्रति सचेत करने के लिए भगवान दु:ख देते हैं, जो आपके कर्मों का ही परिणाम होता है। भगवान आपको दु:ख और पीड़ा इसलिए भी देता है, ताकि आप अपने जीवन के प्रति नजरिया बदलें। दूसरों से अच्छे कार्यों के लिए प्रेरित हों। उक्त विचार जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित कुबेरेश्वरधाम पर जारी सात दिवसीय आन लाइन शिवपुत्री शिवमहापुराण के पहले दिन अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहे। उन्होंने बताया कि यह कथा महाराष्ट्र के लातूर में होने जा रही थी, लेकिन अधिक बारिश होने से अब इस कथा को धाम पर आन लाइन की जा रही है। उन्होंने सभी श्रद्धालुओं से कहाकि आप अपने घरों पर सोशल माध्यम से इस कथा का आनंद ले, इसका सीधा प्रसारण किया जा रहा है। कथा के दौरान अनेक भक्तों के पत्रों का अध्ययन करते हुए पंडित श्री मिश्रा ने कहाकि भगवान पर विश्वास मजबूत होना चाहिए, एक पत्र में दरभंगा के चंदन कुमार ने बताया कि वह लड़ाई-झगड़े के केस में उलझे हुए थे, लेकिन जब उन्होंने धाम की कांवड में आकर एक बार दिल से बोल बम को जयघोष किया तो उनको न्यायालय की समस्या से समाधान हो गया। भगवान शिव की आराधना करने वाला भक्त कभी दुखी नहीं रहता। भगवान भोलेनाथ हर भक्त की सुनते हैं। भोले की भक्ति में शक्ति होती है। भगवान भोलेनाथ कभी भी किसी भी मनुष्य की जिंदगी का पासा पलट सकते हैं। बस भक्तों को भगवान भोलेनाथ पर विश्वास करना चाहिए और उनकी प्रतिदिन आराधना करनी चाहिए।
पंडित श्री मिश्रा ने कहाकि संत, साधु, ज्ञानी महात्मा सुख-दुख के लिए किसी को दोष नहीं देते। मनुष्य जन्म में जो कुछ भी धर्म, अर्थ या यश प्राप्त होता वह पूर्व जन्म में किए गए धर्म कर्म का ही फल होता है। पूर्व जन्म में किए गए कर्मों का फल ही प्रारब्ध है। इस संसार में कोई किसी को दुखी या सुखी नहीं कर सकता। सभी अपने द्वारा किए गए कर्मों का फल भोगते हैं। उन्होंने संतों के गुणों के बारे में बताते हुए कहा संत वे ही हैं जो खुद में सुख-दुख का कारण ढूंढते हैं। सामान्य जीव हमेशा बाहर ही सुख-दुख का कारण खोजता रहता है उसे कुछ भी प्राप्त नहीं हो पाता। जब-जब भी विश्व में संकट आया है तब-तब भगवान शिव की भक्ति ने इसे टाला है, भगवान के नाम की ऊर्जा से हर दुख दूर होता है। उन्होंने कहाकि अर्जुन और दुर्योधन, दोनों द्रोणाचार्य के शिष्य थे, लेकिन उनमें ज्ञान और चरित्र में अंतर था। दुर्योधन अहंकारी था, जबकि अर्जुन विनम्र और गुरु के प्रति समर्पित था। दुर्योधन ज्ञान के लिए कुछ खास प्रयास नहीं करता था, जबकि अर्जुन गुरु से हर संभव ज्ञान प्राप्त करना चाहता था, इसलिए द्रोणाचार्य ने उनके समर्पण का फल प्रदान किया। गुरु के प्रति आपका समर्पण होना चाहिए।
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