मोबाईल पर नंबर मिलाते ही नहीं अपितु सोशियल मीडिया के प्लेटफार्म खासतौर से इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि पर आजकल साईबर ठगी, डिजिटल अरेस्ट, ऑनलाइन या ब्लेक मेलिंग से सतर्क रहने का संदेश सुनने को मिलता है। इतने के बावजूद ठगी के आंकड़ें चेताने वाले हैं। मजे की बात यह है कि साइबर ठगी के इन रुपों से सबसे अधिक शिकार पढ़े लिखे और समझदार लोग ही हो रहे हैं। लाख समझाईस के बावजूद एक और ठगों के हौसले बुलंद है तो ठगी के शिकार होने वाले लोगों की संख्या और राशि में मल्टीपल बढ़ोतरी हो रही है। खास बात यह है कि ठगी के केन्द्र व ठगी के तरीके से वाकिफ होने के बावजूद यह होता जा रहा है। हांलाकि झारखण्ड के जमातड़ा से ठगों के तंत्र को तोड़ दिया गया पर देश में एक दो नहीं अपितु 74 जिलों में इस तरह की ठगी करने वालों के हॉटस्पॉट विकसित हो गए। झारखण्ड, राजस्थान, हरियाणा और बिहार के केन्द्र पहले पांच प्रमुख सेंटर विकसित हो गए।
ऐसा नहीं है कि साइबर अपराध केवल और केवल भारत में हो रहे हैं अपितु यह विश्वव्यापी समस्या होती जा रही है। दुनिया के देशों में देखा जाए तो साईबर ठगी के मामलों में रशिया पहले पायदान तो यूक्रेन दूसरे स्थान पर है। इनके बाद चीन, अमेरिका, नाइजेरिया और रोमानिया का नंबर आता है। इससे एक बात तो साफ हो जाती है साइबर ठगों सारी दुनिया में सहज पहुंच है। लोगों की गाढ़ी कमाई को हजम करने में इन्हें विशेषज्ञता हासिल हैै। लोगों की कमजोरी को यह समझते हैं और उसी कमजोरी के चलते पढ़े लिखे और हौशियार लोगों को भी आसानी से ठगी का शिकार बना लेते हैं। जाल ऐसा की यह समझते हुए कि ऐसा आसानी से होता नहीं है फिर भी चक्कर में फंस ही जाते हैं और ठगों के आगे सरेण्डर होकर लुट जाते हैं।
हमारे देश में साइबर ठग या तो किसी तरह का लालच देकर लिंक भेजकर ठगी करते हैं या फिर ड़रा धमकाकर आसानी से ठगी का शिकार बना लेते हैं। सरकार प्रचार के सभी माध्यमों से बार बार व लगातार आगाह कर रही है कि ठगों द्वारा ड़राने वाले तरीके वास्तविक नहीं है। बैंक कभी भी बैंक डिटेल या ओटीपी ऑनलाइन नहीं मांगते पर पता नहीं कैसे ठगों के जाल में फंसकर अपनी मेहनत की कमाई लुटा बैठते हैं। ओटीपी दे देते हैं तो लिंक खोलने के लिए लाख मना करने के बावजूद लिंक खोलकर लुट जाते हैं। पुलिस अधिकारी बन कर जिस तरह से डिजिटल अरेस्ट कर ठगी का रास्ता अपनाया जा रहा है उस संबंध में अवेयरनेस अभियान के बावजूद ठगी का शिकार होने वालों की संख्या या राषि में कमी नहीं हो रही है। डिजिटल अरेस्ट में डॉक्टर, रिटायर्ड जज, प्रोफेसर, प्रशासनिक अधिकारी सहित संभ्रात वर्ग के लोगों को आसानी से जाल में फंसाकर ठगी हो रही हैं वह भी करोड़ों तक की ठगी के उदाहरण मिल रहे हैं। झूठे मामलों में परिजनों को फंसने से बचाने का झांसा देकर ठगी हो रही है। मजे की बात यह है कि इस स्तर तक ड़र या भयाक्रंात हो जाते हैं कि किसी अन्य या पुलिस से समस्या साझा करने की हिम्मत भी नहीं कर पाते और ठगी के बाद हाथ मलते रह जाते हैं। डिजिटल अरेस्ट के मामलें तो दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। दरअसल इसमें पुलिस, सरकारी जांच एजेंसी या प्रवर्तन निदेशालय के नकली अधिकारी बन कर इस कदर ड़रा देते हैं कि कई दिनों तक लगातार ऑडियो या वीडियो कॉल करके ठगी का शिकार बना लेते हैं।
ऐसा नहीं है कि सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी हो। सरकार व वित्तदायी संस्थाओं द्वारा मीडिया के माध्यम से सजग किया जा रहा है। इसके साथ ही झारखण्ड के बड़े केन्द्र जमातड़ा को लगभग समाप्त कर ही दिया है। पर देष में 74 हॉट स्पॉट विकसित हो गए हैं। इनमें हरियाणा का नूंह, राजस्थान का डीग, झारखण्ड का देवघर, राजस्थान का अलवर और बिहार का नालंदा पहले पांच हॉट स्पॉट हो गए हैं। मीडिया द्वारा भी समय समय पर स्ट्रिंग कर इस तरह के केन्द्रों को एक्सपोज किया है पर ठगी कम होने को ही नहीं है। दरअसल आमनागरिकों को भी सजग होना ही होगा। अनजान नंबरों पर बात ही ना करें। ज्योंही कोई डराये धमकायें तो बहकावें में आने के स्थान पर पड़ताल करें। इस तरह के हालात सामने आये तो परेशान होने के स्थान पर परेशानी को साझा करें, पुलिस का सहयोग लेने में भी संकोच ना करें। देखा जाए तो सजगता इस समस्या का समाधान हो सकती है। सबसे ज्यादा जरुरी यह हो जाता है कि लाख सजगता के बावजूद भी यदि साइबर ठगी का शिकार हो जाते हैं तो उस स्थिति में बिना किसी घबराहट और संकोच के कहां ओर कैसे शिकायत की जा सकती है इसकी जानकारी देने के लिए सरकारी संस्थाओं के साथ ही गैरसरकारी संगठनों को भी आगे आना होगा नहीं तो साइबर अपराध का जिस तरह से दायरा दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रहा है उस पर अंकुश नहीं लग सकेगा।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
स्तंभकार

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