- कमेटियों के चक्कर में फंसा पेंशन बढ़ोतरी का मुद्दा
ईपीएफओ, वित्त मंत्रालय, और श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की त्रयी सिर्फ पेंशनधारियों को "मन बहलाने" के आश्वासन देती नजर आ रही है.हर बार कहा जाता है कि "मामला विचाराधीन है", "अभी समीक्षा जारी है", "वित्तीय भार का आकलन किया जा रहा है", लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि अधिकतर पेंशनधारियों को अभी भी ₹1000 से कम पेंशन में गुज़ारा करना पड़ रहा है. EPS-95 राष्ट्रीय संघर्ष समिति के नेतृत्व में पूरे देश में कई बार प्रदर्शन, भूख हड़ताल, और धरना आयोजित किया गया है। सुप्रीम कोर्ट में भी मामला गया, लेकिन वहां भी लंबे समय से सुनवाई टलती रही."सरकार अगर चाह ले तो एक दिन में न्यूनतम पेंशन ₹3000 या ₹5000 कर सकती है, लेकिन जानबूझकर पेंशनधारियों को 'भविष्य की उम्मीदों' में उलझा रखा गया है." ये वे पेंशनधारी हैं, जिन्होंने अपने जीवन का लंबा हिस्सा सरकारी, अर्ध-सरकारी या निजी क्षेत्र में श्रम कर के देश को खड़ा किया.लेकिन आज उन्हें वृद्धावस्था में न्यूनतम जीवन यापन के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है.सरकार की चुप्पी और कमेटियों के झांसे ने इन बुज़ुर्गों को फिर एक बार सोचने पर मजबूर कर दिया है। "क्या हमने वाकई देश के लिए काम किया, या सिर्फ फाइलों में खो जाने के लिए?"

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