2030 तक भारत में 70% चौबीस घंटे स्वच्छ बिजली संभव, हर साल 9 हज़ार करोड़ की बचत - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

2030 तक भारत में 70% चौबीस घंटे स्वच्छ बिजली संभव, हर साल 9 हज़ार करोड़ की बचत

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अगर भारत की कंपनियाँ हर घंटे के हिसाब से कार्बन-फ्री बिजली खरीदने लगें, तो देश 2030 तक 52 गीगावॉट तक चौबीस घंटे मिलने वाली स्वच्छ बिजली जोड़ सकता है। यह भारत की कुल अनुमानित बिजली मांग का 5% हिस्सा होगा — और उसमें से 70% पूरी तरह स्वच्छ स्रोतों से हासिल किया जा सकेगा। इस बदलाव से ग्रिड ऑपरेटरों को हर साल क़रीब 9 हज़ार करोड़ रुपये की बचत हो सकती है, और साथ ही कार्बन एमिशन में भी उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है। यह विश्लेषण जलवायु डेटा संस्था TransitionZero ने किया है, जिसके मुताबिक अगर कंपनियाँ सिर्फ सालाना औसत की बजाय हर घंटे अपने उपयोग के बराबर स्वच्छ ऊर्जा की खरीददारी करें, तो न सिर्फ ग्रिड सिस्टम ज़्यादा सस्ता और टिकाऊ होगा, बल्कि भारत के ऊर्जा संक्रमण की रफ़्तार भी तेज़ हो सकती है। चौबीस घंटे मिलने वाली स्वच्छ बिजली का मतलब है कि हर घंटे इस्तेमाल की जाने वाली बिजली का स्रोत भी स्वच्छ होना चाहिए — यानी वह पवन, सौर, जल, बैटरी या किसी अन्य कार्बन-फ्री स्रोत से उसी समय मिल रही हो। यह मॉडल सौर या पवन ऊर्जा जैसे स्रोतों की अनियमितता की समस्या को हल करता है और हर वक्त भरोसेमंद बिजली सुनिश्चित करता है — चाहे दिन हो या रात, सप्ताहांत हो या त्योहार।


TransitionZero के विश्लेषक इरफ़ान मोहम्मद का कहना है कि भारत में कारोबारी और औद्योगिक ग्राहक अपनी 70% बिजली की मांग को चौबीस घंटे स्वच्छ स्रोतों से पूरा कर सकते हैं — और यह सालाना औसत मिलान की तुलना में सस्ती भी होगी। यही नहीं, इस मॉडल से सिस्टम स्तर पर एमिशन में 2.4% तक की कटौती की जा सकती है, जबकि पारंपरिक सालाना मिलान मॉडल में यह सिर्फ 1% तक सीमित रहती है। और तो और, कार्बन कम करने की लागत भी तीन गुना कम पड़ती है। इस बदलाव से सबसे ज़्यादा फायदा उन क्षेत्रों को होगा जिनकी बिजली की मांग हर वक्त एक जैसी रहती है — जैसे भारी उद्योग, डेटा सेंटर्स, और उत्पादन इकाइयाँ। इन क्षेत्रों में साल भर का क्लीन एनर्जी सर्टिफिकेट लेना नाकाफ़ी होता है, क्योंकि असली चुनौती हर घंटे ज़रूरी स्वच्छ बिजली उपलब्ध कराने की होती है। चौबीस घंटे मिलने वाली स्वच्छ बिजली का मॉडल इन्हीं जरूरतों को सीधे संबोधित करता है। TransitionZero का मानना है कि इस दिशा में योजना बनाना भारत के लिए ‘नो-रिग्रेट्स’ यानी बिना पछतावे वाला कदम है। इससे न केवल सरकार और कंपनियाँ न्यूनतम लागत पर स्वच्छ बिजली खरीद पाएंगी, बल्कि ग्रिड ऑपरेटरों के लिए भी बिजली व्यवस्था को किफ़ायती और स्थिर बनाए रखना आसान होगा।


स्पेन जैसे देशों में देखा गया है कि सौर बिजली की अधिकता से PPA (Power Purchase Agreement) की दरें गिर रही हैं, और बैटरी स्टोरेज जैसी लचीलापन देने वाली तकनीकों की मांग बढ़ रही है। भारत अगर अभी से इन समाधानों में निवेश करे — जैसे ऊर्जा स्टोरेज, डिमांड रिस्पॉन्स और चौबीस घंटे की बिजली आपूर्ति पर जोर — तो आने वाले संकटों से बचा जा सकता है और ऊर्जा संक्रमण की राह मज़बूत बन सकती है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि अगर भारत 70% से आगे जाकर 100% तक चौबीस घंटे की स्वच्छ बिजली मॉडल अपनाता है, तो देशव्यापी एमिशन में 7% तक की गिरावट आ सकती है — वो भी सिर्फ 5% राष्ट्रीय मांग के हिस्से पर hourly matching लागू करके। यह नज़रिया स्वच्छ ऊर्जा को सिर्फ ‘सर्टिफिकेट’ तक सीमित नहीं रखता, बल्कि उसे असल ज़िंदगी में लागू करने की दिशा में ठोस क़दम है। TransitionZero के अनुसार, यह मॉडल भारत जैसे देश के लिए एक भरोसेमंद और लागत-कुशल रास्ता है — जो जलवायु संकट, ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक लाभ — तीनों को साथ लेकर चलता है।

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