- जनसुनवाई के दौरान उपभोक्ताओं ने खोली बिजली विभाग की पोल, दरों में बढ़ोतरी पर जताई आपत्ति
- व्यवस्था में सुधार लाने के लिए विभागीय स्तर पर स्पष्ट जवाबदेही तय करनी होगी
ग्रामीण से लेकर शहरी उपभोक्ता तक नाराज
वाराणसी और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से आए उपभोक्ताओं ने बताया कि मीटर में गड़बड़ी महीनों तक नहीं सुधारी जाती, शिकायतों पर फोन तक नहीं उठते और बिलिंग में भारी गड़बड़ियां हैं। कई उपभोक्ताओं ने कहा कि उन्हें गलत बिल भेजे जाते हैं और सुधार के लिए कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। एक महिला उपभोक्ता ने जनसुनवाई में आकर रोते हुए बताया कि “बिना खपत के पांच हजार रुपये का बिल भेजा गया, तीन बार चक्कर लगाने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं हुई।”
बुनकरों ने कहा : बिजली नहीं तो रोजगार कैसे चलेगा?
बुनकर समुदाय से जुड़े प्रतिनिधियों ने कहा कि कम वोल्टेज और लगातार ट्रिपिंग से हथकरघा उद्योग ठप पड़ने की कगार पर है। काशी की पहचान माने जाने वाले बनारसी वस्त्र उद्योग को यह बिजली संकट धीरे-धीरे खत्म करता जा रहा है।
उद्योगपतियों ने जताई चिंता : लागत बढ़ रही, उत्पादन घट रहा
लघु एवं मध्यम उद्योग क्षेत्र के प्रतिनिधियों की ओर से आरके चौधरी ने बताया कि “अनियमित बिजली आपूर्ति से मशीनें बार-बार बंद हो जाती हैं। इससे न केवल उत्पादन प्रभावित हो रहा है बल्कि श्रमिकों को समय पर भुगतान में भी दिक्कत आ रही है।”
जनसुनवाई में उठी प्रमुख समस्याएंः
फोन न उठाना, शिकायत पर अधिकारी कॉल रिसीव नहीं करते
मीटर में गड़बड़ी खराब मीटर महीनों तक नहीं बदले जाते
गलत बिलिंग उपभोक्ताओं को वास्तविक खपत से कई गुना अधिक बिल
ट्रिपिंग और फाल्ट गर्मी में रोजाना कई बार बिजली ट्रिप होती है
कम वोल्टेज ग्रामीण क्षेत्रों में बल्ब तक नहीं जलते
अधिकारियों का रवैया उपेक्षा भरा, संवेदनहीन व्यवहार
अधिकारी सुधारें कार्यशैली, तय हो जवाबदेही
अरविंद कुमार ने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश देते हुए कहा कि शिकायतों पर त्वरित और समयबद्ध कार्रवाई की जाए. उपभोक्ताओं से संवाद प्रणाली को मज़बूत किया जाए. प्रत्येक डिवीजन स्तर पर जवाबदेही तय हो. बिलिंग और मीटर प्रणाली में पारदर्शिता लाई जाए, बुनकर और औद्योगिक क्षेत्रों की समस्याओं को प्राथमिकता मिले.
उपभोक्ता कहिन
वाराणसी जैसे सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और औद्योगिक शहर में बिजली सेवा की गुणवत्ता केवल तकनीकी नहीं, सामाजिक और आर्थिक मसला है। जनसुनवाई में उपभोक्ताओं की एक सुर में उठी आवाज़ें बताती हैं कि सेवा और जवाबदेही के बीच खाई गहरी हो गई है। चेयरमैन अरविंद कुमार का साहसिक बयान सराहनीय है, लेकिन असली असर तभी दिखेगा जब ज़मीनी अमला जागेगा और सिस्टम की चुप्पी टूटेगी। उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार समेत कई उद्यमियों और आम नागरिकों ने कहा कि “जब तक मूलभूत सुविधाएं और आपूर्ति व्यवस्था बेहतर नहीं होती, तब तक किसी भी प्रकार की दर वृद्धि को न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता।“

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