सहज भाव से विचार करे और आचरण करे
मंच के संयोजक श्री दीक्षित ने कहाकि सच्चा संत वही है, जो सहज भाव से विचार करे और आचरण करे। जब उसका मान हो, तब उसे अभिमान न हो और कभी उसका अपमान हो जाए, तो उसे अहंकार नहीं करना चाहिए। हर हाल में उसकी वाणी मधुर, व्यवहार संयमशील और चरित्र प्रभावशाली होना चाहिए। संत शब्द का अर्थ ही है, सज्जन और धार्मिक व्यक्ति। सच्चा संत सभी के प्रति निरपेक्ष और समान भाव रखता है, क्योंकि सच्चा संत, हर इंसान में भगवान को ही देखता है, उसकी नजर में हर व्यक्ति में भगवान वास करते हैं, इसलिए उस पर किसी भी तरह के व्यवहार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। सच्चा संत वही है, जिसने अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया हो और वह हर तरह की कामना से मुक्त हो। संत के इस वचन को सुनकर भगवान अभिभूत हो गए। परोपकार करने वाले सच्चे संत के ऐसे ही विचार होते हैं। असल में गेरुए वस्त्र पहनने और हिमालय पर चले जाने मात्र से कोई साधु नहीं बन जाता, बल्कि सच्चा संपूर्ण मानवता के लिए समर्पित होकर सबके विकास को गति देता है। कहा गया है कि संत की पहचान इस बात में नहीं है कि उसे शास्त्रों का कितना अधिक ज्ञान है, बल्कि उसके द्वारा लोकहित में किये गए कार्य उसे सच्चा संत बनाते हैं। सच्चे संत का इस संसार में बड़ा महत्व है, क्योंकि वह ईश्वर का एक प्रतिनिधि होता है, सच्चा संत का पूरा जीवन ईश्वर को समर्पित होता है।

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